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________________ मेवाड़ के वीर. १०७ : दिखाई देने लगे किसानों के चले जाने से खेती बन के समानः होगई, इस भयंकरः उपद्रव के समय में बादशाह ने देखा राज्या.. अनेक प्रकार से हीन अवस्था युक्त होगया है, खजाना खाली हो गया अबा राजकर्मचारी लोग कर दे नहीं सकते। जिसके पास । जाकर माँगे जिसके पास जाँय उसी को अधमरा पायें, तस्करों.. के अत्याचार से घर सने हो गये । जव उस पापीने धन-उपार्जन करने का कोई उपाय न देखा वो भारतवर्ष की सम्पूर्ण हिन्दू-अजा के ऊपर मुण्डकर (जजिया), लगाने का विचार किया। इस भयंकर अत्याचार की सचना होते ही सम्पर्ण भारतवर्ष के ऊपरमानों व टूट पड़ा, कौनसा उपाय करने से भयंकर विपत्ति से छुटकारा मिलेगा, इसको कोई भी स्थिर न कर सका, सब ही हताश, निरुत्साह और चेष्टा रहित होकर हाहाकार करने लगे; उस हृदय को विदीर्ण करने वाले हाहाकार शब्दों से उस पापी बादशाह का हृदय किंचित भी भयवीत. न हुआ अभागे हिन्दुओं की शोचनीय अवस्था को वह अपने नेत्रों से देखता रहा। उसके कठोर हृदय में किंचित भी दया का संचार न हुआ। ऐसे संकटके समय में मेवाड़ के सिंहासनापर राणा राजसिंह । सिंहासनारूढाथे। इनमें अपने पूर्वजों के सभी गुण विद्यमान थे भला ये प्रताप का वंशज. अपने नेत्रों से ऐसे अत्याचार होते हुये कब देख सकता.था, उसकी नसों में पवित्र सूर्यवंश का रक दौड़ .. रहा था। उसने बहुत कुछ सोच विचार के बाद औरंगजेब को जगड राजस्थान द्वि० ० अ० १२ पृ०.३६७-६९ । -
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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