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________________ मेवाड़ के वीर १०५.. होते ही सारे राज्य में हा हा कार शब्द की ध्वनि सुनाई श्राने लगी; सहायता और आश्रय-दीन हिन्दुगण भय के मारे इधरउधर भागने लगे। आज सनातन धर्म की रक्षा का कोई उपाय न रहा; बहुत हिन्दु लोग मुग़ल-राज्य को छोड़ व्याकुल हो अतिशीघ्र दक्षिण की ओर चले गये, अनेक हिन्दु सन्तान शाही अहलकारों के अत्याचारों से पीड़ित हो, वहाँ से भागने का कोई उपाय न देख कर उन्मत्त हो अपने हाथ से ही अपने हृदय को छेदन करने लगे, जो खी, पुत्र और परिवार अपने प्राणों से भी अधिक प्यारी 1, वस्तु है, निःसहाय हिन्दुगण पहले अपने हाथ से 'उनको मारकर फिर उसी कटारी तथा छुरी से भयंकर शोकानल में अपनी आहुति देने लगे । सारा राज्य विना राजा के समान हो गया, चारों ओर से हाहाकार शब्द सुनाई आने लगा, उन दुःखित हुये हिन्दुओं का आर्तनाद, उन निरुपाय और निःसहाय हिन्दुओं के हृदय को विदीर्ण करने वाला शोक ही पल पल में सुनाई पड़ता था । हिन्दुओं का मान और मर्यादा जाती है, कुल-धर्म और जातिगौरव पाताल को चला चाहता है, याज भारतवर्ष में 'प्रलय का समय आ पहुँचा है, कौन इस प्रलय के समय में इन भागे हिन्दुओं को यमराज के हाथ से बचावेगा ? कौन इस कुंबुद्धिमान दानव के हाथ से सहाय-हीन भारत सन्तानों का उद्धार करेगा, कोई भी नहीं ? जो रक्षा करने वाला है, यदि वही भक्षण करने वाला हो जाय, जिसके ऊपर प्रजा की मान मर्यादा है, जाति-धर्म का विचार स्थित है, यदि वही अपने पराये का विचार कर सजाति
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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