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________________ . १०४ राजपूताने के जैन-धीर बुझाने के लिये भीम ने दुर्योधन का रक्त पान किया-संसार में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं। यहाँ भी एक ऐसे .ही प्रतिहिंसा से उन्मत्त वीर-वर दयालदास का उल्लेख करना है। ... ___ लगभग ३०० वर्ष की बात है। जब इस अभागे भारतवर्ष के वक्षस्थल पर यवनों के अनेक राक्षसी अत्याचार हो रहे थे। प्रजा की गाढ़ कमाई हम्माम, मकबरे और संगमरमर की नहरें बनवाने में खर्च की जा रही थी। शराव के दौर चलते थे, हरें नाचती थीं, किसी के लिये यह भारत जन्नत और किसी के लिये यह दोजख बना हुआ था, तब औरंगजेब अपने भाइयों को कत्ल कर के और वृद्ध पिता शाहजहाँ को कैद कर उसी के बनवाये हुए वीन करोड़ के मयूर-सिंहासन पर बैठ कर निरीह प्रजा को किस्मत का फैसला करता था। वह धर्मान्ध मुसलमान था। उस के कठोर शासन और अनर्थकारी धर्मान्धता से हिन्दूत्राहि-त्राहि कर उठे थे। अबलाओं, मासूमों और बेकसों पर दिन दहाड़े अत्याचार होते थे, धार्मिक मन्दिर जमीदोज किये जाते थे,मस्तक पर लगा हुआ तिलक जबान से चाट लिया जाता था चोटी काट ली जाती थी। महात्मा टॉड़ साहब लिखते हैं कि:-"औरंगजेब ने अपने इष्ट मित्रों को बुलाय इस भयंकर आज्ञा का प्रचार करने के लिये कहा कि "हमारे राज्य के सम्पूर्ण हिन्दुओं को मुसलमान होना पड़ेगा, जो लोग इस आज्ञा को नहीं मानेंगे.उनको बलात्कार इस धर्म पर चलाया जायगा।" इस महा भयंकर दुःखदाई आज्ञा का प्रचार
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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