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________________ क्षमा मागने की यह पद्धति अत्यन्त महान् है । मनुष्य से ही नहीं, हम हमारे साथ रहने वाले समस्त जीवो से क्षमा मागते है। किसी प्राणी को दुःख देना नहीं चाहते। फिर भी ससारी हैं। किसी कारण से उनके दुख का कारण बन ही जाते है, भूल से अथवा अशुभ कर्मो के उदय से। उसके लिए पश्चाताप करें, क्षमा मागें तो यह क्रिया प्रशसनीय ही समझी जायेगी। साधु-सतो के व्याख्यानो से मन को रास्ते पर रखने मे बडी मदद मिलती है। वे भी कुछ समय निकाल कर हमे उपदेश देते हैं और अच्छी बातो का ज्ञान कराते है। मन को किन उपायो से सही रास्ते पर चलाया जा सकता है यह समझाने मे वे हमारी बड़ी सहायता करते है। अच्छा साहित्य तो हमारे लिए कल्पतरु के समान है जो चौबीसो घटे हमे लाभ पहुंचा सकता है। पूजा का अवलम्बन स्वाध्याय के कुछ उपायो मे से एक उपाय ऐसा है जो हमारे मन को सबल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। वह उपाय है जिनराज भगवान की "मूर्ति पूजा"। आपका ध्यान इसी पोर आकृष्ट करने का मेरा मुख्य ध्येय है। हमारे मन मे यह विचार आ सकता है कि जब हम हमारे मन को सामायिक,प्रतिक्रमण, साधुओ एव विद्वानो की सगति और सत् साहित्य मनन आदि द्वारा अच्छे रास्ते पर स्थिर रख सकते हैं तब मूर्ति-पूजा जैसी इतनी खर्चीली और परिश्रमी क्रिया को क्यो अपनावे ? ___ अन्य उपायो से तुलना:-यह बात माननी पडेगी कि दूसरी कई क्रियानो की अपेक्षा मूर्ति-पूजा मे खर्च अधिक है और परिश्रम भी। हमे इसे अपनाने मे काफी परिश्रम करना पडता है। पर जव हम इसकी उपयोगिता पर सहृदयता पूर्वक ध्यान देते है तो हमे अपने पूर्वजो पर, जिन्होने अपने अथक परिश्रम और अपार धन राशि से यह अमृत घट बनाया है, बहुत ही गौरव होता है। स्वाध्याय के अग पौपध, प्रतिक्रमण और सामायिक बहुत ही अच्छी और ऊँचे दर्जे की क्रियाएँ है पर है एक खासी अच्छी जानकारी रखने वालो के लिए ही। १५८
SR No.010055
Book TitlePooja ka Uttam Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPanmal Kothari
PublisherSumermal Kothari
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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