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________________ कहते हैं, कोई कुछ और कोई कुछ । आखिर हैं सव एक । विना कुछ व्यवहारो को अपनाये, हम में प्रेम रह नही सकता, हमारा कलह मिट नही सकता । कानून और धर्म में कोई खास अन्तर नही होता । एक सामाजिक नियंत्रण के अन्तर्गत है और दूसरा स्व-नियत्रण । है दोनो ही मन पर नियत्रण लाने के आधार | कानून का सुधार 'दबाव' से और धर्म का सुधार 'भाव' से सम्बन्धित होता है। धर्म का अर्थ है - "हमारे मन पर हमारा नियत्रण । हमारे सुधार के हम रखवाले, हम जिम्मेवार ।" कानून और धर्म में कुछ अन्तर हो अथवा न हो, अपने -२ स्थान पर दोनो उपयोगी है । एक हमारी अवोय अवस्था में काम करता है तो दूसरा हमारी ज्ञान- अवस्था मे । यह तो मानी हुई बात है कि हर प्राणी को दोनो अवस्थाओ से होकर गुजरना पडता है इसलिए हमें विवेक पूर्वक दोनो का ही सम्मान रखना पडता है। कई धर्म का उल्टा अ समझ, गलत धारणा बना लेते है । है उनका कहना "धर्म एक थोयी बकवास है । प्रथम तो ऐमे आदर्शो पर हमारा दृढ रहना असम्भव, यदि दृढ रह जाय तो भी पेट का प्रश्न इससे हल होने का नही है ।" परिश्रम करने वाले देशो को देखिये कैमी उन्नति कर ली है । इसलिए अच्छा यही है कि हम अपनी आवश्यकता को समझते हुए सही परिश्रम को ही अपनावे ।' 1 धर्म पर बहुतो को दृढ रहते न देख या द्रव्य वस्तु की प्राप्ति न जान, निराश होने वाले मेरे वन्धु किसी भी निर्णय के पहले हमे अपने, 'लाभ या हानि', दोनो ही पर हर दृष्टि से विचार कर लेना अति आवश्यक है । कई प्रयास प्रत्यक्ष लाभ या हानि पहुँचाते हैं तो कई अप्रत्यक्ष रूप से । वैसे ही हानि का रुकना भी हमारे लिए एक अपेक्षा से लाभप्रद ही है । माना कि पेट का प्रश्न हमारे जीवन का सबसे पहला और गुरुतर प्रश्न है और यह भी मानते है कि धर्म के प्रभाव से इस प्रश्न को हम चाहे जितना सकुचित या सीमित कर डालें, फिर भी कुछ-न-कुछ हमारे लिए यह बना रह ही जायेगा । जव इस 'कुछ' के लिए ही हमें कुछ ऐसे परिश्रम की आवश्यकता है १५१
SR No.010055
Book TitlePooja ka Uttam Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPanmal Kothari
PublisherSumermal Kothari
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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