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________________ साधु-मतो के व्यात्यान निश्चय ही हम सबके लिए बडे हितकर होते है पर कठिनाई यह है कि उनकी प्राप्ति अति दुर्लभ होती है। वे तो अपने ज्ञान, ध्यान तपस्या, यानी स्वाध्याय में इतने तल्लीन रहते हैं कि उन्हे इतना समय कहाँ कि रोज-२ हमें अपनी आवश्यक्तानुसार व्यास्यानो से लाभ पहुंचाते रहे। माना कभी कोई विहार करते-२ आ गये, तो भी उनका निवास, हमारे साथ अति अल्प काल का होता है। कभी-कभी हम ऐसे दूर देशो में जा वसते है जहाँ उनका आवागमन ही नहीं होता। इतने वडे देश में इतने कम साधु, और उनके पास उपदेश देने का अति कम समय, फिर ऐमा सुन्दर सुयोग हमारी आवश्यकतानुसार हमे नित्य कैसे प्राप्त हो सकता है ? कई कह सकते है कि अब वह जमाना थोडे ही रहा है कि मुनि वर्षों तक तपस्या और ध्यान में मौन रह कर अपनी पलक ही न खोले या शहरो के वाहर बहुत दूर ठहर कर जब चाहें तव विहार कर जाये। अव तो इन उदार महापुरुपो ने अपने उपदेशो द्वारा भविजीवो को तारने के लिए अपना जीवन ही अर्पण कर दिया है। ये करुणा सागर अति दूर-२ तक, अति उग्न विहार का कप्ट उठाते हुए पहुंचने की कोशिश करते ही रहते है और दिनमें एक बार नही, दिन-रात में चार-२ वार,गला वैठने पर भी गला फाड-२ कर जन साधारण के हित की दृष्टि से घटो व्याख्यान देते है । अत्यन्त सतोप इस बात का है कि कोई सुश्रावक व्यस्तता के कारण, अरुचि अथवा प्रमादके कारण या अस्वस्थता के कारण उनका सदुपदेश सुनने को उनके ठिकाने तक न पहुँच सका हो तब भी ये महा तेजस्वी उस मुश्रावक की समृद्धि अथवा उसके सरकारी, या सामाजिक पद की महत्ता को मद्दे नजर रखते हुए श्रीमान् के भवन, वगले अथवा निवास - निक्तन तक जाकर भी उपदेश का लाभ पहुंचा आते है। इस स्थिति मे महगी मूर्तिपूजा की क्या आवश्यकता है ? मूर्ति-पूजा की तरफ यदि हमें झुका दिया जाता है तो हमे उपदेश ग्रहण करने वालो से भी अधिक इन उपदेश देने वालो को, कितनी गहरी अतराय पडेगी, सोचा भी है ? वस्तुत व्याख्यान सुनने वालो को व्याख्यान सुनने में उतनी रुचि नहीं है, जितनी व्यास्यान देनेवालो को व्याख्यान देने में है। व्याख्यान आज कल सस्ते जरूर हो गये है पर बात इतनी ही है कि इन्हें मुनि-व्याख्यान नही कह सकते । ये १५९
SR No.010055
Book TitlePooja ka Uttam Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPanmal Kothari
PublisherSumermal Kothari
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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