________________
विश्वनिर्माता
४१
प्रकाण्ड तार्किक जैनाचार्य अकलंकने अपने अकलकस्तोत्रमे न्यायकी कसौटीपर कसी गयी पूजनीय विभूति परमात्मापर प्रकाश डालते हुए उन्हे महान देवताके रूपमे मान इन उद्बोधक शब्दोमे निर्दोष, वीतराग परमात्माको प्रणाम किया है
"त्रैलोक्यं सकलं त्रिकालविषय सालोकमालोकितम् साक्षात् येन यथा स्वयं करतले रेखात्रय सागुलि। रागद्वेषभयामयान्तकजरालोलत्वलोभादयो
नालं यत्पदलयनाय स महादेवो मया वन्द्यते ।।" -जो त्रिकालवर्ती लोक तथा अलोकके समस्त पदार्थोका हस्तगत अगुलियो तथा रेखाओके समान साक्षात् अवलोकन करते है तथा राग-द्वेप, भय, व्याधि, मृत्यु, जरा, चचलता, लोभ आदि विकारोसे विमुक्त है, उन महादेव-महान् देवकी मै वन्दना करता हूँ।
१ जय सरवग्यः अलोक-लोक इक उडुवत देखें।
हस्तामल ज्यौ हाथलीक ज्यौं, सरब बिसेखे ॥ छहौं दरब गुन परज, काल त्रय वर्तमान सम। दर्पण जेम प्रकास, नास मल कर्म महातम ।। परमेष्ठी पांचौं विघनहर, मंगलकारी लोक में। मन वच काय तिर लाय भुवि, आनद सौ द्यों धोक में।।१।।
-द्यानतराय, चर्चाशतक।