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धर्मकी आधारशिला-आत्मत्व
धर्मके विरुद्ध आवाज उठानेका कोई कारण नहीं रहता। ऐसा धर्म जिस आत्मामे, जिस जातिमें, जिस देशमे, अवतीर्ण होता है, वहा आनन्दका सुधाश अपनी अमृतमयी किरणोसे समस्त सन्तापोको दूरकर अत्यन्त उज्ज्वल तथा आह्लाद-प्रद अवस्थाको उत्पन्न करता है। ऐसे धर्मकी अवस्थितिमे शत्रुता नहीं रहती। स्वतन्त्रता, स्नेह, समृद्धि, शान्ति सभी आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिदैविक आदि सर्वतोमुखी अभिवृद्धिसे वह व्यक्ति अथवा राष्ट्र पवित्र होता है। जब इस पुण्य-भू भारतमे धर्ममय जीवनवाली विभूतियोका विहार होता था, तब यही भारत सर्वतोमुखी उन्नतिका क्रीडास्थल बना हुआ था और मनुके शब्दोमे इस देशकी गुणगाथा देवता भी गाया करते थे।
धर्मकी आधारशिला-श्रात्मत्व ___ भारतीय दर्शनोमे चारु-वाक् अर्थात् मधुर-भाषी चार्वाक-सिद्धान्त अपना निराला राग आलापता है। इस दर्शनकी दृष्टिमें वे ही बाते मान्य है जो प्रत्यक्ष ज्ञानका विषय बनती है। सुकुमार-बुद्धि तथा भोग-लोलुपी लोगोको विषयोमें प्रवृत्त करानेमे यह ऐसी तर्कपूर्ण सामग्री प्रदान करता है कि लोग इसके चक्करमे उसी प्रकार फँस जाते है, जिस प्रकार मधुके माधुर्यसे आकर्षित मक्षिका मधु-पुञ्जमें रस-पान करते-करते अन्तमे कष्टपूर्वक प्राणोका विसर्जन कर बैठती है। ____ इस चार्वाककी प्रत्यक्षकी एकान्तमान्यता अनुमान-प्रमाणको माने विना टिक नही सकती। कमसे कम अपने सिद्धान्तके समर्थनमे वह कुछ युक्ति तो देगा, जिससे प्रत्यक्षमें प्रामाणिकता पायीजाए उस युक्तिसे यदि पक्षसमर्थन किया तो 'साधनात् साध्यविज्ञानम्' रूप अनुमानप्रमाणसे चार्वाककी 'प्रत्यक्ष ही प्रमाण है' इस मान्यताका मूलोच्छेद हुए विना न रहेगा।
१ "प्रत्यक्षं प्रमाणम् अविसंवादित्वात् , अनुमानादिकमप्रमाणं विसवादित्वादिति लक्षयतोऽनुमानस्य बलात् व्यवस्थितेन प्रत्यक्षमेकमेव प्रमाणमिति व्यवतिष्ठते।" -अष्टसहली विद्यानन्दि पृ० ६५।