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उन्मूलन करनेके स्थानमे उनका समुचित सुधार उचित है । दूरके पदार्थ प्रायः पर्वतमालाके समान मनोरम मालूम पडते हैं । इसी प्रकार विविध वादोते समाकुल रूम आदि देव सुखी और समृद्ध बताए जाते हैं, किन्तु ' उनके अंतस्तत्त्वते परिचित लोग कहते है कि वहां आतंकवादका 'मारुवाद्य' निरन्तर वजता हूँ । रूसमें पांच वर्षतक वन्दी रहनेवाले पोलेण्डके एक उच्च सेनानायकने 'ग्लोब' के सवाददातासे कोलंबोसे आस्ट्रेलिया जाते समय कहा था, कि उनकी सरकार वस्तुतः प्रजातत्रपर नहीं, आतंकवाद पर अधिष्ठित है । खनियोको यह नही जात है कि बाहरकी दुनिया में क्या हो रहा है। वे अनेक प्रकारकी परतन्त्रताओकी सुनहरी नाकलोंसे जकड़े हुए हैं। जो भी हो, भारतवर्षका कल्याण पश्चिमकी अन्य आरावनायें नहीं है । इसकी आर्थिक समस्याका सुन्दर सुवार गांधीजीकी विचारपूर्ण योजनाओंके सम्यक् विकासमे विद्यमान है । यथार्थनें जीवदया, सत्य. अचौर्य आदि सद्वृत्तियोंका सम्यक् परिरक्षण करते हुए जो भी देगी विदेशी लोकोपयोगी उपाय या योजनाएँ आत्रे उनका अभिनन्दन करनेमें कोई बुराई नही है । हा, जिस योजना द्वारा अहिंसा आदिकी पुण्य ज्योति क्षीण हो, वह कभी भी स्वागत करने योग्य नहीं है । आर्थिक समस्याके सुवारके लिए पश्चिमी प्रक्रियाको भयावह बताते हुए उस दिन आचार्य शान्तिसागर म्हाराजने कहा था, “पूर्वभवमे दया, दान तरादिके द्वारा इस जन्ममे धन वैभव प्राप्त होता है। हिमादि पात्र पापोंके आचरणले जीव पापी होता है, और वह पापके उदयसे दुःख पाता है । पापी और पुण्यात्माको समान करना अन्याय है। सत्रको समान बनानेपर व्यसनोकी वृद्धि होगी । पापी जीवको धन मिलनेपर वह पाप कर्मोमें अधिक लिप्त होगा ।" आचार्य श्रीने यह भी कहा कि " तज्जन शासक गरीबोक उद्धारका उपाय करता है। हृष्ट पुष्ट जीविका विहीन गरीवोको वह योग्य वन्वोमें लगाता है। अतिवृद्ध, अगहीन, असमर्थ दीनोका रक्षण करता है ।" भारतीय संस्कृति अत्यन्त पुरातन है । अगणित परिवर्तनी और क्रान्तियोकै मध्यमें भी उसके
कल्याणपथ