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कल्याणपथ
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स्थान नही दिया है।" विद्वेषका ऐसा उदाहरण कहा मिलेगा, कि 'जब जापानियोने युद्ध कालमे अग्नेजोके वडे जहाज 'रिपल्स' और 'प्रिंस आफ वेल्स' डुवाए थे, तब एक प्रमुख अग्रेजको उन जहाजोके डूबनेका उतना परिताप नहीं था, जितना कि उस कार्यमे जापानियोका योग कारण था। उसने कहा था, कदाचित् पीताग जापानियोके स्थानमे श्वेताग जर्मनो द्वारा यह ध्वस कार्य होता, तो कही अच्छा था। ऐसे सकीर्ण, स्वार्थी एव जघन्य भावनापूर्ण अन्त करणमे मानवताका जन्म कैसे सभव हो सकता है।
आजकी दुर्दशाका कारण जस्टिस जगमन्दरलाल जैनी इन मार्मिक शब्दो द्वारा व्यक्त करते है, "जडवादके राक्षसने युद्ध और सपत्तिके रूप में जगत्को इस जोरसे जकड लिया है, कि लोगोने अपनी वास्तविकताको भुला दिया है और वे अपनी अर्थ जागृत चेतनामे स्वयको 'आत्मा' अनुभव न कर केवल 'यत्र' समझते है"। इस प्रकारकी विवेकपूर्ण वाणीकी विस्मृति के कारण विश्वको महायुद्धोमे अपनी बहुत कुछ बहुमूल्य आहुति अर्पण करनी पडी। तात्विक बात तो यह है, कि अहिंसात्मक जीवनके लिए जगत् को कुछ त्याग-कुछ समर्पण रूप मूल्य चुकाना होगा। जबतक विषय-लोलुपतासे मुख नही मोडा जायगा, तबतक कल्याणके मन्दिरमे प्रवेश नहीं हो सकेगा।
१. “An Englishman occupying a high position said that he would have preferred if the Prince of Wales and the Repulse had been sunk by the Germans, instead of by the yellow Japanese.”—Ibid p 544
R "The monster of materialism has got such a grip of the world in the form of mars, and mammon, that men have so far forgotten their reality and that they sub-consciously believe themselves to be more machines instead of souls."