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जनशासन
है। ऐसे अद्भुत अहिसावादी मधुर-पद-विन्यासमे प्रवीण, सुन्दर पक्ष सुसज्जित, प्रियभापी मयूरके समान मनोज मालूम पडते है, किन्तु स्वेप्ट सामग्रीके समक्ष आते ही, इनकी हिंसन वृत्तिका विश्वको दर्शन हो जाता है। ऐसी प्रवृत्तिसे क्या कभी मधुर फलकी प्राप्ति हो सकती है ? कहते है, किसीने एक वृक्षके लहलहाते हुए सुनहरी रगके पुष्पोपर मुग्ध हो उस वृक्षकी इस आशासे आराधना आरभ की, कि फल कालमे वह रत्न राशिको प्राप्त करेगा, किन्तु अन्तमे ढन-ढन ध्वनि देनेवाले फलोकी उपलब्धिने उसका भूम दूर कर दिया। इसी प्रकार आजकी हिंसात्मक प्रवृत्तिवालोकी, उनकी चित्तवृत्तिके अनुसार अहिंसाकी अद्भुत रूप-रेखाको देखकर, भीपण भविष्यका विश्वास होता है। हिसा गर्भिणी नीतिके उदर से उत्पन्न होनेवाली विपत्तिमालिकाके द्वारा विश्वकी शोचनीय स्थिति विवेकी व्यक्तियोको जागृत करती है। ___ कहते हैं, इस युगका धर्म समाज सेवा है, और मानवताकी आराधना ही वास्तविक ईश्वरोपासना है। इस विषयमे यदि सूक्ष्म दृष्टिसे चिंतन किया जाय, तो विदित होगा कि यथार्थ मानवता केवल वाणीकी वस्तु वन गई है और उसका अन्त करणसे तनिक भी स्पर्श नही है। प० जवाहरलाल नेहरूको स्पष्टोक्ति महत्त्वपूर्ण है कि "आजके जगत्ने बहुत कुछ उपलब्धि की है, किन्तु उसने उद्घोषित मानवताके प्रेमके स्थानमे घृणा और हिंसाको अधिक अपनाया है तथा मानव बनानेवाले सद्गुणोको १ "सुवर्णसदृशं पुष्पं फलं रत्नं भविष्यति ।
प्राशया सेव्यते वृक्षः फलकाले ढण्ढनायते ॥" { "The world of today has achieved much but for all its declared love for humanity it has based itself far more on hatred and violence than on the yırtues that make man human."
-Discovery of India. p. 687.
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