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विश्वसमस्याएँ और जैनधर्म
पूर्वक जीवन क्यो नही बिताते ? तो वह कहेगा, मुझे इसमे ही आनन्द मालूम पडता है । हा, यदि वह व्यक्ति जन्त निरीक्षण ( Introspection) का अभ्यास रखे, तो वह यह स्वीकार करेगा, कि कोल्हूके वैलके समान जीवन विवेकी मानवके लिए गौरवकी वस्तु नही कहा जा सकता । गान्धीजीने अमेरिकाको एक महत्त्वपूर्ण सन्देश दिया था - " वह (अमेरिका) धनको उसके सिंहासन या तख्तसे हटाकर ईश्वरके लिए थोडी जगह खाली करे ।" गान्धीजीने यह भी कहा, "मेरा खयाल है कि अमेरिकाका भविष्य उजला है । लेकिन अगर वह बनकी ही पूजा करता रहा, तो उसका भविष्य काला है।” उनका यह वाक्य कितना सुन्दर है " लोग चाहे जो कहे, धन आखिर तक किसीका सगा नही रहा। वह हमेशा बेबफा ( वेईमान ) दोस्त सावित हुआ है" - ( हरिजन सेवक १०-११-४६, ३)
विश्वशान्ति-स्थापनके विपयमे गभीर विचार करते हुए श्री वैरिस्टर चपतरायजीने अपनी पुस्तक “ The Change of Heart" (P. 57 ) मे लिखा है, कि वास्तविक शान्तिकी कामना करनेवाले
जिनशासनभक्त तथा अन्य अल्प व्यक्ति है । गान्तिभग करनेवाले अपरिमित सख्या वाले है । उनमेंसे एक वर्ग (१) उन धर्मान्धो (Fanatics) का है, जो सोचते हैं कि अपने रक्तपातपूर्ण कार्यों द्वारा अपने ईश्वरकी प्रसन्नताको प्राप्त करेंगे, और ईश्वरले क्षमा भी प्राप्त कर लेगे । उस ईश्वरसे वडे-वडे पुरस्कार पानेकी इन भक्तोको आवा है । साम्प्रदायिक विद्वेप प्रज्वलित करनेवाले तथा अमानुषिक कृत्यो द्वारा इस भूतलपर नारकीय दृश्य उपस्थित करनेवाले इन मजह्वी दीवानोंके द्वारा विश्वमे यथार्थ ऐक्य तथा शान्तिका दर्शन दुर्लभ वन जाता है । इनके सिवाय दूसरा वर्ग ( २ ) शिकारीकी भावना ( Hunter's Spirit ) के नशेमे चूर है। वे दूसरोकी मपत्ति या भूमि-रक्षणमे सहायता इसी आधारपर देते है, कि तुम यह स्वीकार करो कि वल ही सच्चा है ( Might is right ) । तुम उनको वलगाली स्वीकार करो ।
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