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धके नामपर
करनेवाले पुरुषोपर लादना यद्यपि न्यायकी मर्यादाके वाहरकी बात है, तथापि ठगाया हुआ व्यक्ति रोषवश यथार्थ वातका दर्शन करनेमे असमर्थ हो अतिरेकपूर्ण कदम वढानेसे नही रुकता। ऐसे ही रोष तथा आन्तरिक व्यथाको निम्नलिखित पक्तिया व्यक्त करती है___ "धर्मने मनुष्यको कितना नीचे गिराया, कितना कुकर्मी बनाया, इसको हम स्वय सोचकर देखे। ईश्वरको मानना सबसे पहले वुद्धिको सलाम करना है । जैसे शरावी पहला प्याला पीनेके समय बुद्धिकी विदाईको सलाम करते है, वैसे ही खुदाके माननेवाले भी वुद्धिसे विदा हो लेते है। धर्म ही हत्याकी जड़ है। कितने पशु धर्मके नामपर रक्तके प्यासे ईश्वरके लिए ससारमे काटे जाते है, उसका पता लगाकर पाठक स्वय देख लें। समय आवेगा कि धर्मकी वेहूदगीसे ससार छुटकारा पाकर सुखी होगा और आपसकी कलह मिट जाएगी। एक अत्याचारी, मूर्ख शासक, खुदमुख्तार एव रद्दी ईश्वरकी कल्पना करना मानो स्वतत्रता, न्याय और मानवधर्मको तिरस्कार करके दूर फेक देना है। यदि आप चाहें कि ईश्वर आपका भला करे तो उसका नाम एकदम भुला दे , फिर ससार मगलमय हो जायगा। __"वेद, पुराण, कुरान, इजील आदि सभी धर्मपुस्तकोके देखनेसे प्रकट है कि सारी गाथाएँ वैसी ही कहानिया है जैसी कुपढ़ बूढी दादी-नानी अपने वच्चोको सुनाया करती है। विना देखे-सुने, अनहोने, लापता ईश्वर या खुदाके नामपर अपने देशको, जातिको, व्यक्तित्व और धन-सम्पत्तिको नष्ट कर डालना, एक ऐसी मूर्खता है जिसकी उपमा नही मिल सकती। यदि हम मनुष्य जातिका कल्याण चाहते है तो हमे सबसे पहले धर्म और ईश्वरको गद्दीसे उतारना चाहिए।" । ___ इस विषयमें अपना रोष व्यक्त करनेवालोमे सम्भवत रूसने बहुत लम्वा कदम उठाया है। वहाँ तो बडे-बडे सम्मेलन करके वोटो (मतो)
१ प्रपञ्चपरिचय पृ० २१७-२०॥