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जैनशासन
"जगतके मानी जीव है रह्यो गुमानी ऐसो , आस्रव असुर दुःखदानी महा भीम है। ताको परिताप खंडिवेको परगट भयो , धर्मको धरैया कर्म रोगको हकीम है। जाके परभाव आगे भागें परभाव सब , नागर नवल सुख-सागरको सोम है। संवरको रूप धरै साथै शिवराह ऐसो,
ज्ञानी पातशाह ताको मेरी तसलीम है ।" इनकी रचना नाटक समयसार अध्यात्म अमृत रससे पूर्ण अनुपम कृति है । यह कविकी प्राणपूर्ण लेखनीका प्रसाद है कि ब्रह्मविद्याका प्रतिपादन शुष्क न होकर अत्यन्त सरस, आह्लादजनक तथा आकर्षक बना है। ग्रन्थके विषयमे स्वय कविका कथन कितना अतस्तलको स्पर्श करता है
"मोक्ष चढ़वेको सोन, करमको कर बौन , जाके रस भौन बुद्धि लौन ज्यों घुलत है। गुनिनको गिरंथ निरगुनीनको सुगम पंथ , जाको जस कहत सुरेश अकुलत है। याहीके सपक्षी सो उड़त ज्ञान-गगन मांहि , याहीके विपक्षी जगजालमें रुलतु है। हाटक सो विमल विराटक सो विसतार ,
नाटकके सुने हिए फाटक यो खुलतु है।" यह अभिमानी प्राणी बात बातमे अपनी नाककी सोचा करता है, वह यह नही सोचता कि वस्तुत. यह नाक थोडेसे मासका पिंड है, जिसका आकार 'तीन' सरीखा दिखता है । ऐसी नाकके पीछे यह न तो सद्गुरूकी आज्ञाका ही आदर करता है, और न यह विचारता है, कि मेरा स्वभाव पद पद पर लडाई लेना नहीं है। वह तो अपनी कमरमे खड्ग बाधकर