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पराक्रमके प्रागणमे
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प्रधान मानव-समुदायके नेतृत्वमे अगाति, कलह, व्यथा और दुखका ही नग्न नर्तन दिखाई देगा। ____ जव अहिंसात्मक व्यक्तियोके हाथमे भारतकी वागडोर थी, 'तव देशका इतिहास स्वर्णाक्षरोमें लिखा जाने योग्य था। आज उस अहिसा के स्थानमे कही क्रूरता और कही कायरताके प्रतिष्ठित होनेके कारण अगणित विपत्तियोका दौरदौरा दिखाई पड़ता है। वस्तुस्थितिसे अपरिचित होनेके कारण ही लोग भगवती अहिंसाको क्रूरता और कायरताके फलस्वरूप होनेवाले राष्ट्रीय पतनका अपराधी बनाते है। लोगोने वीरताको युद्धस्थल तक ही सीमित समझा है किंतु 'साहित्यदर्तण' ने उसे दान, धर्म, युद्ध तथा दया इन चार विभागोसे युक्त वताया है । जैनधर्मकी आराधना करनेवालोको हम इस प्रकागमे देखे तो हमे विदित होगा कि जैनधर्मका आलोक किस प्रकार जीवनको प्रकागपूर्ण वनाता रहा है। ____इतिहासके क्षेत्रमे भारतीय स्वातंत्र्यके श्रेष्ठ आराधक महाराणा प्रतापको स्वेच्छासे अपनी सारी सपत्ति समर्पित करनेवाला वीर भामाशाह अहिंसाका आराधक जनशासनका पालक था। यदि भामागाहने
१ चंद्रगुप्त आदि जैन नरेशोके शासनका इतिवृत्त इस बातका __ समर्थक है। २ “स च दान-धर्म-युद्धर्दयया च समन्वितश्चतुर्धा स्यात् ।"
___-सा० द० श्लो. २३४,३ । ३ "जा धनके हित नारि तजै पति पूत तजै पितु शीलहिं सोई।
भाई सो भाई लर रिपुसे पुनि मित्रता मित्र तजे दुख जोई। ता धनको बनियां है गिन्यो न दियो दुख देशके आरत होई। स्वारथ प्रार्य तुम्हारो ई है तुमरे सम और न या जग कोई।"
-भारतेन्दु हरिश्चंद्र ।