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जैनशासन
है ? - " जैनधर्म मे मनुष्यकी उन्नतिके लिए सदाचारको अधिक महत्त्व प्रदान किया गया है। जैनधर्म अधिक मौलिक, स्वतन्त्र तथा सुव्यवस्थित है । ब्राह्मण धर्मकी अपेक्षा यह अधिक सरल, सम्पन्न एव विविधतापूर्ण है और यह बौद्धधर्मके समान शून्यवादी नही है ।"
हिन्दूधर्मका स्वरूप समझनेसे जैनधर्मकी स्वतन्त्रताका भाव अनायास हृदयगम किया जा सकता है । हिन्दूधर्मके प्रकाण्ड विद्वान् सर राधाकृष्णन् का कथन है कि' “वेद हिन्दूधर्मका मूलाधार है । हिन्दू वह है, जिसने वेदके आधारपर भारतमे विकास प्राप्त किसी भी धर्म परपराको अपने जीवन एव आचरणमे अपनाया हो ।" लोकमान्य तिलकने लिखा है कि "जिसकी बुद्धि वेदको प्रमाण मानती है, वह हिन्दू है ।" हिन्दू कानूनके विशेषज्ञ डा० सर हरीसिंह गौरका कथन है कि हिन्दू शब्द शास्त्राधारपर अवस्थित
१ “ There is very great ethical value in Jainism for man's improvement. Jainism is very original, independent and systematic doctrine It is more simple, more rich and varied than Brahmanical systems and not negative like Buddhism"
-Dr A, Guernot. २. “The Veda is the basis of Hindu religion A Hindu is one who adopts in his life and conduct any of the religious traditions developed in India on the basis of the Vedas"
“Religion and Society by Dr. Radhakrishnan - pp. 109-137
३ " प्रामाण्यवृद्धिर्वदेषु साधनानामनेकता ।
उपास्यानामनियमः एतद्धर्मस्य लक्षणम् ॥”
४ “We are called Hindus, a term for which there is no scriptural authority It is a term carried by the muslim