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इतिहासके प्रकाशमे
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करती है कि जैनधर्मका उद्भव इस युगमे भगवान् महावीर अथवा पार्श्व - नाथसे न मानकर उनके पूर्ववर्ती भगवान् वृषभदेवसे मानना उचित है।
जैन शास्त्रोमे चौबीस तीर्थकर श्रेष्ठ महापुरुष माने गए है। हिन्दू शास्त्रोमे २४ अवतार स्वीकार किए गए है । बौद्धधर्ममे २४ बुद्ध माने गए हैं । जोरेस्ट्रीयनो (Zorastrians) मे २४ अहूर (Ahuras ) मान े गए है। यहूदी धर्ममे भी आलकारिक भाषामे २४ महापुरुप स्वीकार किए गए है ।" जैनेतर स्रोतो द्वारा जैनधर्मके चोवीस महापुरुषो की मान्यताका समर्थन यह सूचित करता है कि जैन मान्यता सत्यके आधारपर प्रतिष्ठित है ।
शब्दका भारतमे व्यापक
इसी प्रकार जैनियोमे प्रचलित 'जुहार' प्रचार जैन संस्कृतिके प्रभावको स्पष्ट करता है । 'जु' युगादि पुरुष भगवान् वृषभदेवके प्रणामका द्योतक है, 'हा' का अर्थ है, जिनके द्वारा सर्व सकटोका हरण होता है और 'र' का भाव है, जो सर्व जीवधारियोके रक्षक है इस प्रकार जिनेन्द्र गुण वर्णन रूप 'जुहार' शब्दका भाव है। 'जुहार' शब्द का व्यवहार जैन वधु परस्पर अभिवादन में करते है । तुलसीदासजीकी रामायणमे 'जुहार' शव्दका अनेक बार उपयोग किया गया है | अयोध्याकाण्डमे लिखा है कि चित्रकूटकी ओर जव रामचद्रजी गए है, तब योग्य निवास भूमिको देखते समय पुरवासियोने रघुनाथजीसे जुहार की है ।
"लै रघुनाथह ठाउँ देखावा । कहेउ राम सब भांति सुहावा । पुरजन करि जोहारू घर आए। रघुवर संध्या करन सिधाए ॥ ८६-३ ॥ " पुरवासियोके द्वारा इस शब्दका प्रयोग इसकी सर्वमान्यताको सूचित करता है ।
१. Vide - Rishabhadeva, the Founder of Jainism p. 58, also Key of Knowledge