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जैनशासन
समय सिद्धार्थ नामक द्वारपालने तत्काल जाकर महाराज सोमप्रभ तथा श्रेयासकुमारसे भगवान्के आगमनका समाचार निवेदन किया।
जव श्रेयास महाराजने भगवान्का दर्शन किया, तब उन्हे जातिस्मरण-जन्मान्तरकी स्मृति प्राप्त हो गई। अत पुरातन सस्कारके प्रभावसे आहारदान देनेमे बुद्धि उत्पन्न हुई। उनको यह स्मरण हो गया कि हमने चारणऋद्धिधारी मुनियुगलको श्रीमती और वजूजघके रूपमें आहारदान दिया था। इस पुण्य स्मृतिकी सहायतासे श्रेयास महाराजने इक्ष रसकी धाराके समर्पण द्वारा एक वर्षके महोपवासी जिनेन्द्र आदिनाथ प्रभुके निमित्तसे अपने भाग्यको पवित्र किया। ____ यह दान अक्षय पद प्रदाता तथा अक्षयकीतिका निमित्त बना, इस कारण उस वैशाख सुदी तीजके साथ 'अक्षय' पद लग गया। महाराज श्रेयासको अमरकीर्ति प्राप्त हुई। चक्रवर्ती भरतेश्वर श्रेयास महाराजसे कहते है
"भगवानिव पूज्योऽसि कुरुराज त्वमद्य नः। त्व दानतीर्थकृत् श्रेयान् त्वं महापुण्यभागसि ॥"-आदिपु० २८-२१७ १ "श्रूयते यः श्रुतश्रुत्या जगदेकपितामहः।
स नः सनातनो दिष्टया यातः प्रत्यक्षसन्निधिम् ॥ दृष्टेऽस्मिन् सफल नेत्रे श्रुतेऽस्मिन् सफले श्रुती। स्मृतेऽस्मिन् जन्तुरज्ञोऽपि व्रजत्यन्त पवित्रताम् ॥४९-५०॥ अहं पूर्वमहं पूर्वमित्युपेतैः समन्ततः। तदा रुद्धमभूत् पौरेः पुरमाराजमन्दिरात् ॥ ६३ ॥ ततः सिद्धार्थनामैत्य द्रुतं दौवारपालकः। भगवत्सन्निधि राजे सानुजाय न्यवेदयत् ॥ ६६ ॥ संप्रेक्ष्य भगवद्रूपं श्रेयान् जातिस्मरोऽभवत् । ततो दाने मति चके संस्कारैः प्राक्तनैर्यतः ॥ ७८ ॥"
-आदिपुराण पर्व २०॥