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साधकके पर्व
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लोग प्रेम पूर्वक आ आकर उन्हे प्रणाम करते थे। कोई पूछते थे-भगवन्, कृपा कर हमे कार्य बताइये, कोई लोग चुपचाप भगवान्के पीछेपीछे चले जाते थे। कोई अमूल्य रत्नो को लाकर भेट करते थे, कोई वस्तु, वाहन आदि लाते थे, किन्तु भगवान्के चित्तमे उनके प्रति इच्छा न होनेके कारण वे चुपचाप विहार करते जाते थे। भिन्न-भिन्न सामग्रीके द्वारा लोग अपने प्रभुका सन्मान करनेका प्रयत्न करते थे, किन्तु भगवान् की गूढचर्याका भाव कोई भी नही जान सका था। इस प्रकार छह माहका समय और व्यतीत हो गया। उस समय कुरुजागल देशके अधिपति श्रेयास महाराजने रात्रिके अन्तिम प्रहरमे ७ स्वप्न देखे, जिनका पुरोहितने कल्याणप्रद फल वताया । मेरुदर्शनका फल बताया था कि मेरु समान उन्नत तथा मेरु पर्वत पर अभिषेकप्राप्त महापुरुष आपके राजप्रासाद में पधारेंगे।
इतनेमे बडा कोलाहल हुआ कि भगवान् आदिनाथ प्रभु हमारे पालननिमित्त पधारे है, चलो शीघ्र जाकर उनका दर्शन करे तथा भक्तिपूर्वक उनकी पूजा करे।
"भगवानादिकर्ताऽस्मान् प्रपालयितुमागतः। पश्यामोऽत्र द्रुतं गत्वा पूजयामश्च भक्तितः॥"
-महापु० पर्व २०-४५॥ कोई-कोई कहते थे कि-श्रुतिमे सुनते थे कि इस जगत् के पितामह है। हमारे सौभाग्यसे उन सनातन प्रभुका प्रत्यक्ष दर्शन हो गया। इनके दर्शनसे नेत्र सफल होते है, इनकी चर्चा सुननेसे कर्ण कृतार्थ हाते है , इन प्रभुका स्मरण करनेसे अज्ञ प्राणी भी अन्त निर्मलताको प्राप्त करता है। ____ उस समय प्रभुदर्शनकी उत्कण्ठासे अहमहमिकाभावपूर्वक पुरवासियोका समुदाय महाराज श्रेयासके महल तक इकट्ठा हो गया। उस