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वल-प्रयोगका अवलम्वन त्यागना होगा। आज वहुजनके लिए शातिकी आकाक्षाका एक धधा-सा बन गया है। फिर भी रक्तरजित क्राति और, युद्धके मेघ हमपर मडरा रहे है। इसका कारण सम्यग्दर्शनमें विश्वासका अभाव है। यह विवेकशून्य वहिरात्मताका ही कारण है, जिसने कुछ व्यक्तियोके हाथोमे धन एव जीवनके आनन्दोको केंद्रित कर दिया है।
और वही विवेक शून्यता असामाजिक व्यवहारका दुष्कारण है। सम्यग्दर्शनमे श्रद्धाके द्वारा उत्पन्न होने वाला कार्य ही केवल युक्तिपूर्ण होगा। वह ही सामाजिक न्यायको उत्पन्न करेगा तथा शान्ति और समता लावेगा, क्योकि यह स्पष्ट ही है कि समाज विवेककी नीव पर टिका है। स्याद्वाद सहिष्णुता और क्षमाका प्रतीक है, कारण वह यह मानता है कि दूसरे "व्यक्तिको" भी कुछ कहना है ।
विश्लषण करनेपर जैनधर्मके उपदेश उतने ही आधुनिक ज्ञात होगे, जितने कि वे प्राचीन है। वे साम्प्रदायिकतापूर्ण नहीं है, क्योकि वे किसी न किसी रूपमें विश्वके उन सभी महान्धर्मों के आधारभूत है, जिनने मनुष्यके प्रारब्धको प्रभावित किया है ।
'मै विद्वान् लेखकका, जैनधर्मके उज्ज्वल विचारोको देशके बहुजन वर्गकी भाषामें प्रस्तुत करनेकी मनोवृत्ति तथा उसे उल्लेखनीय सफलता'पूर्वक सपन्न करने के कारण, हार्दिक अभिनन्दन करता है। वह सभी मानवोके मस्तिष्कको प्रकाश देती हुई, आह्वान की घोषणा करती है, विशेषतया जैनसमाजके लिए जो आधुनिक नूतन समाजव्यवस्थाके सृजनमे प्रभावशाली स्थिति रखती है कि वह अपने महान् आचार्यों के उपदेशोके अति प्रामाणिक सिद्ध हो। १८ मई सन् १९५० ) (डा० सर) एम० बी० नियोगी अम्बा-विहार ( (एम० ए० एल एल०,एम०एल एल०डी०) नागपुर ((पूर्वप्रमुख न्यायाधीश नागपुर हाईकोर्ट
) एव पूर्व उपकुलगुरु नागपुर विश्वविद्यालय)