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आत्मजागृतिके साधन-तीर्थस्थल २४३ होगा और वह पवित्रताके पथमे प्रगति करनेके लिये पर्याप्त प्रेरणा प्राप्त करेगा। हमारा मस्तिष्क विभिन्न सस्मरणरूपी रेलवे लाइनोके जक्शन समान है। जिस ओरके रेल-पथपर स्मृतिके सहारे हमारे विचार-एञ्जिनने अपनी गाडी खीचना आरम्भ किया, सस्मरण हमें उसी दिशामे वढाते हुए ले जाते है। सिनेमा की राष्ट्र-भक्तिसे परिपूर्ण फिल्म देख दर्शकका हृदय देश-भक्ति भावोसे परिव्याप्त होता है और किसी धार्मिक खेलको देख उसकी आत्मा धार्मिकताके भावोसे पूर्ण होगी। ___ लगभग आठ वर्ष हुए हमे विहार प्रान्तमे गयाके पास नवादा स्टेशन के समीपवर्ती गुणावा नामक जैन-तीर्थ पर पहुँचनेका अवसर मिला। ट्रेनकी अनुकूलता न होनेके कारण हमे अनिच्छापूर्वक भी कुछ समय वहा ठहरना पडा । पीछे यह भान हुआ कि वहा रुकना दुर्भाग्य नही, वडे सौभाग्यकी वात हुई। भगवान् महावीरके प्रमुख शिष्य तपस्वी-शिरोमणि इन्द्रभूति गौतम गणधरकी वह निर्वाणभूमि थी। उनके जीवनकी दिव्य स्मृतिसे आत्माको बहुत प्रकाश और प्रेरणा प्राप्त हुई। मन ही मन में सोचने लगा, गौतम स्वामीका चरित्र बड़ा विचित्र है। जो व्यक्ति कुछ समय पूर्व अन्य दर्शनोका पारगामी पडित हो महावीर-शासनका भयकर विरोधी वन स्वय भगवान्से गास्त्रार्थमें दिग्विजय पानेकी नियत से प्रभुके समवशरणके समीप पहुंचा और भगवान् के योगवलसे प्रभावित मनोज्ञ मानस्तम्भको विभूतिको देख मानरहित हुआ और प्रभुके समीप पहुचते-पहुचते उस एकान्तीको आत्मामें अनेकान्त-सूर्यकी सुनहरी किरणोने प्रवेशकर हृदयमे छिपे हुए मोह-मिथ्यात्वके निविड़ अन्धकारको दूर कर दिया, जिससे वह गौतम प्रभुका भक्त वन गया। सम्पूर्ण परिग्रहका परित्याग कर दिगम्बरमुद्रा धारण की। अनेक ऋद्धिया उत्पन्न हो गई! मन पर्यय नामक महान् जानका उदय हुआ और अल्पकालमे ही उस आत्माने इतनी प्रगति की, कि वह आत्मसाधकोकी श्रेणीमें प्रमुख वन श्रमणसघका अधिपति-गणघर