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जैनशासन
चरानेका पैसा मागने प्रथम बार पहुंचा। अपने क्षणिक विज्ञानकी धुनमें मग्न हो पडितजीने ग्वालेको यह कहकर वापिस लौटा दिया कि जिसकी गाय थी और जो ले गया था, वे दोनो अब नहीं है, बदल गये। इसलिए कौन और किसे पैसा दे | दुखी हो, ग्वाला किसी स्याद्वादीके पास पहुंचा और उसके सुझावानुसार जब दूसरे दिन पडितजीके यहा गाय न पहुँची, तब वे ग्वालेके पास पहुँच गायके विषयमे पूछने लगे। अनेकात विद्यावाले बधुने उसे मार्ग वता ही दिया था, इसलिए उसने कहा-"महाराज गाय देने वाला, लेने वाला तथा गाय, सभी तो बदल गये, इसलिए आप मुझसे क्या मागते है ?" पडितजी चक्करमें पड गये। व्यावहारिक जीवनने भुमाधकार दूर कर दिया, इसलिए उन्होने कहा-"गाय सर्वथा नही बदली है, परिवर्तन होते हुए भी उसमे अविनाशीपना भी है" इस तरह ग्वालेका वेतन देकर उनका विरोध दूर हो गया। इससे स्पप्ट होता है कि एकात पक्षके आधारपर लौकिक जीवनयात्रा नही बन सकती।
कोई बौद्धदर्शनकी मान्यताके विपरीत वस्तुको एकात रूपसे नित्य मानते है। इस सबधमे समन्तभद्राचार्य 'युक्त्यनुशासन' मे लिखते है-'
"भावेषु नित्येषु विकारहानेर्न कारपच्यापृतकार्ययुक्तिः । न बन्धभोगौ न च तद्विमोक्षः समन्तदोषं मतमन्यदीयम् ॥८॥"
पदार्थोके नित्य माननेपर विक्रिया-परिवर्तनका अभाव होगा और परिवर्तन न होनेपर कारणोका प्रयोग करना अप्रयोजनीय ठहरेगा। इसलिए कार्य भी नहीं होगा। बध, भोग तथा मोक्षका भी अभाव होगा। इस प्रकार सर्वथा नित्यत्व माननेवालोका पक्ष समतदोष-दोषपूर्ण होता है। एकात नित्य सिद्धान्त माननेपर अर्थक्रिया नही पायी जायगी। पुण्य- पापरूप क्रियाका भी अभाव होगा। आप्तमीमासामे कहा है
"पुण्यपापक्रिया न स्यात् प्रेत्यभाव फलं कुतः। बन्धमोक्षौ च तेषां न येषा त्वं नासि नायक. ॥५०॥"