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समन्वयका मार्ग-स्याद्वाद
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से अपनेको वचित करता है। आनन्दकी बात है कि इस युगमे साम्प्रदायिकताका भूत वैज्ञानिक दृष्टिके प्रकाशमे उतरा, इसलिए स्याद्वादकी गुण-गाथा वडे-बडे विशेषज्ञ गाने लगे। जर्मन विद्वान् प्रो० हर्मन जेकोबीने लिखा है-"जैनधर्मके सिद्धान्त प्राचीन भारतीय तत्त्वज्ञान और धार्मिक 'पद्धतिके अभ्यासियोके लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। इस स्याद्वादसे सर्व सत्य विचारोका द्वार खुल जाता है।" इण्डिया आफिस लन्दनके प्रधान पुस्तकालयाध्यक्ष डा० थामसके उद्गार बडे महत्त्वपूर्ण है-"न्यायशास्त्रमे जैन न्यायका स्थान वहुत ऊँचा है। स्याद्वादका स्थान वड़ा गम्भीर है। वह वस्तुओकी भिन्न-भिन्न परिस्थितियोपर अच्छा प्रकाश डालता है।" भारतीय विद्वानोमे निष्पक्ष आलोचक स्व० पण्डित महावीरप्रसाद द्विवेदीकी आलोचना अधिक उद्बोधक है-"प्राचीन ढरके हिन्दू-धर्मावलम्वी बड़े-बडे शास्त्रीतक अव भी नहीं जानते कि जैनियोका 'स्याद्वाद' किस चिड़ियाका नाम है। धन्यवाद है जर्मनी, फ्रान्स और इंग्लैण्डके कुछ विद्यानुरागी विशेषज्ञोको जिनकी कृपासे इस धर्मके अनुयायियोके कीर्ति-कलापकी खोजकी ओर भारतवर्षके इतरजनो का ध्यान आकृष्ट हुआ। यदि ये विदेशी विद्वान् जैनोके धर्मग्रन्थोकी आलोवना न करते, उनके प्राचीन लेखकोकी महत्ता प्रकट न करते तो हमलोग शायद आज भी पूर्ववत् अज्ञानके अन्धकारमें ही डूवते रहते।" ___ गांधीजीने लिखा है "जिस प्रकार स्याद्वादको मैं जानता हूँ, उसी प्रकार मैं उसे मानता हूँ। मुझे यह अनेकान्त वडा प्रिय है।" ___ श्रीयुत महामहोपाध्याय सत्यसम्प्रदायाचार्य प० स्वामी राममिश्रजी शास्त्रीने लिखा है कि-"स्यावाद जैनधर्मका एक अभेद्य किला है, जिसके अन्दर प्रतिवादियोके मायामय गोले प्रवेश नहीं कर सकते।"
अव हमें देखना है कि यह स्याद्वाद क्या है जो शान्त गम्भीर और असाम्प्रदायिकोकी आत्माके लिए पर्याप्त भोजन प्रदान करता है। 'स्यात्' शब्द कञ्चित्-किसी दृष्टिसे (from some point of view)