________________
१३८
जनशासन
कही भी नहीं पाया जाता। अगरेजी विश्वकोषमे पाली साहित्यके आधारपर भगवान् महावीरको निम्रन्थ दिगम्बर माना है। जब अहिसाव्रतके रक्षार्थ उन्होने दिगम्बर मुद्राको स्वीकार किया तब भगवतीसूत्र सदृश श्वेताम्बर ग्रन्थोके आधारपर पश्चात्वर्ती रचनाकारोके द्वारा एव प्रो० धर्मानन्दजी कोसम्बी सदृश समर्थकोके वलपर भगवान् महावीरको मासाहारसे सम्बन्धित करना शान्त चिन्तनाके प्रतिकूल है। जब भगवान् के सम-समयवर्ती पाली साहित्यमें विपक्षी लोग उनकी अहिंसात्मक चर्या के विरुद्ध एक अक्षर भी नहीं लिखते, तब सैकडो वर्ष पीछे सकलित पूर्वोक्त साहित्यमे महावीरके चरित्रको हिंसात्मक जीवनसे किसी भी अवस्थामें सम्बन्धित बताना इन्द्रियलोलुपी लोगोका कार्य होगा, ऐसा प्रतीत होता है। हमारे ध्यानमे तो यह बात आती है कि चन्द्रगुप्त मौर्यके समयमे जो बारह वर्षका भयकर दुष्काल पडा था, उस समय शैथिल्यपरम्पराको प्रचारित करनेवाले कुछ प्रभावशाली जीवन-लोलुपी लोगोने भरण-पोषणका अन्य सम्भव उपाय न पा आपद्धर्म समझ आमिष भोजनकी ओर प्रवृत्ति की। और, जब दक्षिण भारतसे विशाल जैनसध सु-काल आनेपर उत्तरकी ओर लौटा और उसके प्रमुख मुनियोने उत्तरवालोकी स्वेच्छापूर्ण वृत्तिकी आलोचना की, तब कुछ लोग इन्द्रियोकी लोलुपताका परिहार न कर पाए और अपना मुख उज्ज्वल रखनेके लिए उन्होने भगवान् महावीरको भी अपने समान चर्यावाला प्रमाणित करने योग्य साहित्यकी सृष्टि कर 'आप डुबन्ते पाडे, ले डूबे जजमान' वाली कहावतको चरितार्थ किया। सोचनेकी बात है, कि जिस परम कारुणिक महान् आत्माने छोटे-छोटे जीवो तककी पीडा निवारण निमित्त वस्त्रादिका परित्याग किया, वह किसी भी अवस्थामे त्रस जीवोका कलेवर आमिष आहार ग्रहण करेगा?
यह हर्षकी बात है कि प्रो० धर्मानन्दजी कोसम्बी दिगम्बर शास्त्रो के आधारपर आमिष भोजी-पनेसे भगवान महावीरके जीवनको असम्ब