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जनशासन
जल पीवन उद्यम कीधो । कादो द्रह कु जर बोधो ॥ निहचै जब मरन विचारयो । सन्यास सुधी तब धारयो ।"
-पावपुराण, दूसरा सर्ग। तिर्यञ्चोको भी सयम साधनमे तत्पर देख बुधजनजी मनुप्योको सयमके लिए उत्साहित करते हुए कहते है
"सुलझे पसु उपदेस सुन, सुलझें क्यो न पुमान ।
नाहर तें भये वोर जिन, गज पारस भगवान ॥" - सतसई सत्पुरुषोका कथन है, 'यह मनुष्य जीवन एक महत्त्वपूर्ण हाट है। यहाकी विशेप निधि सयम है। जिसने इस वजारमे आकर सयम-निधिको नही लिया, उसने अक्षम्य भूल की।'
प्राथमिक अभ्यासी साधकके लिए सयमका अभ्यास करनेके लिए आचार-शास्त्रके महान् विद्वान् आशाधरजीने लिखा है-"जव तक विषय तुम्हारे सेवनमें नही आते, कम-से-कम उतने काल तकके लिए उनका परित्याग करो। कदाचित् व्रती अवस्थामे मृत्यु हुई तो दिव्य जीवन अवश्य प्राप्त होगा।
दूसरी वात, जितनी तुम्हारी उचित आवश्यकता हो, उसकी सीमाके वाहर विपयादिक सेवनका सरलतापूर्वक त्याग कर सकते हो। प्राय अपनी आवश्यकताको भूल लालसाके अधीन हो यह जीव सारी दुनियासे नाता जोडता हुआ-सा प्रतीत होता है। अत शान्ति और सुखमय जीवनके लिए आवश्यकतासे अधिक वस्तुओका परित्याग करना चाहिए, जिससे अनावश्यक पदार्थोके द्वारा रागद्वेषादि विकार इस आत्मा की शान्तिको भग न करे। सयमका अभ्यास आन्तरिक प्रेरणाके द्वारा सुफल दिखाता है। वीमार व्यक्ति अपने चिकित्सककी आज्ञाके अनुसार १ यावन्न सेव्या विषयास्तावत्तानप्रवृत्तितः। व्रतयेत्सवतो दैवान्मृतोऽमुत्र सुखायते॥
-सागारधर्मामृत २ । ७७ ।
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