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सयम बिन घडिय म इक्क जाहु
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क्रूरताकी अधिक मात्रा होती हैं । सहनशीलता, जितेन्द्रियता और परिश्रम-शीलता उनमे कम पायी जाती है। मि० वेरेस महाशय नामक विद्युत् शास्त्रज्ञने यह सिद्ध किया है कि फल और मेवामे एक प्रकारकी विजली भरी हुई है, जिससे शरीरका पूर्णतया पोषण होता है । 'न्यूयार्क - ट्रिव्यून' के सपादक श्री होरेस लिखते है- "मेरा अनुभव है कि मासाहारीकी अपेक्षा शाकाहारी दस वर्ष अधिक जी सकता है । श्रध्यापक लांरेंसका अनुभव है - "मासाहारसे शरीरकी शक्ति और हिम्मत कम होती है। यह तरहतरहकी बीमारियोका मूल कारण है। शाकाहारके साथ निर्बलता, भीरुता तथा रोगोका कोई सम्वन्ध नही है । " ( 'मासाहारसे हानिया' से उद्घृत) ।
एक मटनमार्तण्ड उपाधिसे विख्यात हिन्दूसमाजके हितचिन्तक डॉक्टर साहब हिन्दू जातिको बलिष्ठ वनानेके लिए मास- भक्षण के लिए प्रेरित करते थे । वे सफलता के स्वप्न देखते हुए यह भूल जाते थे कि मासभक्षणके द्वारा वे विवेकी मनुष्यको पशुजगत् के निम्नतर स्तरपर उतारते है । मासभक्षण न करनेवाले अहिंसक महापुरुषोने अपने पौरुष और बुद्धिबलके द्वारा इस भारतके भालको सदा उन्नत रखा है | अहिसा और पवित्रताकी प्रतिमा वीर शिरोमणि जैन सम्राट चन्द्रगुप्तने सिल्यूकस जैसे प्रवल पराक्रमी मासभक्षी सेनापतिको पराजित किया था । पराक्रम को आत्माका धर्म न मानकर शरीर सम्बन्धी विशेषता समझनेवाले ही यथेच्छाहारको ग्राह्य वतलाते है । शौर्य एव पराक्रमका विकास जितेन्द्रिय और आत्म-वलीमे अधिक होगा। राष्ट्रके उत्याननिमित्त जितेन्द्रियता ब्रह्मचर्य - सगठन आदि सद्गुणोको जागृत करना होगा । मनुप्यताका स्वय सहार कर हिसक पशुवृत्तिको अपनानेवाला कैसे साधना के पथमे प्रविष्ट हो सकता है ? ऐसे स्वार्थी और विपयलोलुपीके पास दिव्य विचार और दिव्य सम्पत्तिका स्वप्नमे भी उदय नही होता । अतएव पवित्र जीवन के लिए पवित्र आहारपान अत्यन्त आवश्यक है ।