________________
सयम विन घडिय म इक्क जाहु
हाथी आदि वडे जानवर शान्त और नम्र मिलेंगे। सिंह और चीतेकी ओर जाओगे तो वे उतने ही अशान्त मिलेगे । यह अन्तर आहार भिन्नताके कारण है।"
महाभारतमे तो यहातक लिखा है कि- आहार-गुद्धि न रखनेवालेके तीर्थ-यात्रा, जप-तप आदि सव विफल हो जाते है -
दह
" मद्यमासाशनं रात्रौ भोजन कन्दभक्षणम् । ये कुर्वन्ति वृथा तेषां तीर्थयात्रा जपस्तप ॥ चातुर्मास्ये तु सम्प्राप्ते रात्रिभोज्यं करोति यः । तस्य शुद्धिर्न विद्येत चान्द्रायणशतैरपि ॥”
कुछ लोग मासभक्षणके समर्थनमे वहस करते हुए कहने लगते हैं। कि मास - भक्षण और शाकाहारमे कोई विशेष अन्तर नही है । जिस प्रकार प्राणधारीका अग वनस्पति है उसी प्रकार मास भी जीवका शरीर है । जीव- शरीरत्व दोनोमे समान है। वे यह भी कहते है कि अण्डा - भक्षण करना और दुग्धपानमे दोषकी दृष्टिसे कोई अन्तर नही है। जिस अडेमें बच्चा न निकले उसे वे unfertilisedegg- निर्जीव अण्डा कहकर शाकाहारके साथ उसकी तुलना करते है ।
यह दृष्टि अतात्त्विक है । मासभक्षण क्रूरताका उत्पादक है, वह सात्त्विक मनोवृत्तिका सहार करता है । वनस्पति और मास के स्वरूपमें महान अन्तर है । एकेन्द्रियजीव जल आदिके द्वारा अपने पोषक तत्त्वको ग्रहणकर उसका खल भाग और रस भाग रूप ही परिणमन कर पाता है । रुचिर, मास आदि रूप आगामी पर्याये जो अनन्त जीवोका कलेवररूप होती है, वनस्पतिमे नही पायी जाती। इसलिए उनमे समानता नही कही
•
उनमें
१ कच्चे अथवा पके मांसमें भी हिंसा दोष पाया जाता है, कारण सूक्ष्म जीवोंको निरन्तर उत्पत्ति होती रहती है । पु० सिद्धयुपाय, ६७ स्वयं मरे भैसा, बैल आदिका मांस भक्षण करना भी दोषयुक्त है ?
पृ० ६६