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________________ सयम बिन घडिय म इक्क जाहु हननकी अपेक्षा समानता होनेसे सब पाप हिसात्मक ही है। स्पष्टतया समझानेके लिए झूठ, चोरी आदिके भेद वर्णित किये गये है । इस दृष्टिसे समष्टिकी भाषामे हिसा ही पाप है और अहिसा ही चारित्र तथा साधनाका मार्ग है। ८३. आध्यात्मिक भाषामे रागादिक विकारोकी उत्पत्तिको हिसा और उनके अप्रादुर्भावको अहिसा कहा है। व्यावहारिक भाषामे मनसा-वाचाकर्मणा सकल्पपूर्वक (Intentionally ) त्रस जीवोका (Mobile creatures) न तो स्वय घात करता है, न अन्यके द्वारा घात कराता है एव प्राणिघातको देख न आन्तरिक प्रशसा द्वारा अनुमोदना ही करता है यह गृहस्थकी स्थूल अहिसा है। प्राथमिक साधक इस अहिंसा - अणुव्रत - के रक्षार्थ मद्य, मास और मधु का परित्याग करता है । इसीलिए वह शिकार भी नही खेलता और न किसी देवी- देवताके आगे पशु आदिका बलिदान ही करता है | कितनी निर्दयताकी बात है यह, कि अपने मनोविनोद अथवा पेट भरने के लिए भयकी साकारमूर्ति, आश्रय-विहीन, केवल शरीररूपी सम्पत्तिको धारण करने वाली हरिणी तकको शिकारी लोग अपन े हिसाके रसमे मारते हुए जरा भी नही सकुचाते और न यह सोचते कि ऐसे दीन प्राणी प्राणहरण करनेसे हमारा आत्मा कितना कलकित होता जा रहा है। आचार्य गुणभद्रने आत्मानुशासनमे लिखा है " भीतमूर्तिः गतत्राणा निर्दोषा देहवित्तिका । दन्तलग्नतॄणा घ्नन्ति मृगीरन्येषु का कथा ॥ २६ ॥" जवा ( द्यूत) अनुचित तृष्णा तथा अनेक विकारोका पितामह होनेके कारण साधक के लिए सतर्कतापूर्वक ग्राम्य अथवा भद्ररूपमे पूर्ण - तया त्याज्य है | पापोके विकासकी नस - नाडी जाननेवालोका तो यह अध्ययन है कि यह सम्पूर्ण पापोका द्वार खोल देता है। श्रमृतचन्द्र स्वामी इसे सम्पूर्ण अनर्थोमे प्रथम, पवित्रताका विनाशक, मायाका मन्दिर, चोरी और वेइमानीका अड्डा बताते है । /
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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