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________________ २६ जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश उत्पन्न हुआ और तब उन्होंने ( उक्त सूत्रोंके बाद ) 'द्रव्यप्रमाणानुगम' नामके प्रकरणको आदिमें रखकर ग्रन्थकी रचना की। इस ग्रन्थका नाम ही 'षटस्वण्डागम' है; क्योंकि इस पागम ग्रन्थमें १ जीवस्थान, २ क्षुल्लकबंध, ३ बन्धस्वामित्वविचय, ४ वेदना, ५ वर्गणा और ६ महाबन्ध नामके छह खण्ड अर्थात् विभाग है, जो सब महाकर्म-प्रकृतिप्राभृत-नामक मूलागमग्रन्थको संक्षिप्त करके अथवा उसपरसे समुद्धृत करके लिखे गये हैं । और वह मूलागम द्वादशांगश्रुतके अग्रायणीय-पूर्वस्थित पंचमवस्तुका चौथा प्राभूत है। इस तरह इस षट्खण्डागम श्रुतके मूलतंत्रकार श्रीवर्धमान महावीर, अनुतंत्रकार गौतमस्वामी और उपतंत्रकार भूतबलि-पुष्पदन्तादि आचार्योको समझना चाहिये । भूतबलिपुष्पदन्तमें पुष्पदन्ताचार्य सिर्फ 'सत्प्ररूपणा' नामके प्रथम अधिकारके कर्ता है, शेष सम्पूर्ण ग्रन्थके रचयिता भूतबलि आचार्य है । ग्रन्थका श्लोकपरिमाण इन्द्रनन्दि-श्रुतावतारके कथनानुसार ३६ हजार है, जिनमेंसे ६ हजार संख्या पांच खण्डोंकी और शेष महाबन्ध खण्डकी है; और ब्रह्महेमचन्द्रके श्रुतस्कन्धानुसार ३० हजार है। यह तो हुई धवलाके अाधारभून षट् ग्वण्डागमश्रतके अवतारकी कथा; अब जयधवलाके अाधारभून 'कपायपाहुड' श्रुतको लीजिये, जिसे 'पेज्जदोस पाहुड' भी कहते हैं। जय धवलामें इसके अवतारकी प्रारम्भिक कथा तो प्रायः वही दी है जो महावीरमे प्राचारांग-धारी लोहाचार्य तक ऊपर वर्णन की गई है.---मुख्य भेद इतना ही है कि यहाँ पर एक-एक विषयके प्राचार्योका काल भी साथमें निर्दिष्ट कर दिया गया है, जब कि 'धवला' में उसे अन्यत्र 'वेदना' खण्डका निर्देश करते हुए दिया है । दूसरा भेद आचार्योंके कुछ नामोंका है । जयधवलामें गौतमस्वामीके बाद लोहाचार्यका नाम न देकर सुधर्माचार्यका नाम दिया है, जो कि वीर भगवान्के बाद होने वाले तीन केवलियोंमेसे द्वितीय केवलीका प्रसिद्ध नाम है। इसी प्रकार जयपालकी जगह जसपाल और जसबाहूकी जगह जयबाह मामका उल्लेख किया है। प्राचीन लिपियोंको देखते हुए 'जस' और 'जय' के लिखनेमें बहुत ही कम अन्तर प्रतीत होता है इससे साधारण लेखकों द्वारा 'जस' का 'जय' और 'जय' का 'जस' समझ लिया जानां कोई बड़ी बात नहीं है। हां, लोहाचार्य और सुधर्माचार्यका अन्तर अवश्य ही चिन्तनीय है । जयधवलामें कहीं
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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