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________________ श्रुतावतार-कथा दो सिद्धान्तागमोंके अवतारकी कथा दी गई है जिन पर अन्तको 'धवला' और 'जयधवला' नामकी विस्तृत टीकएं--क्रमशः ७२ हजार तथा ६० हजार श्लोकपरिमाण लिखी गई है। भाष्यके रूपमें इनका नाम 'धवल' और 'जयधवल' अधिक प्रसिद्ध है। षट्खएडागम और कषायप्राभूतकी उत्पत्ति धवलके शुरूमें, कर्ताके 'अर्थकर्ता' और 'ग्रन्थकर्ता' ऐसे दो भेद करके, केवलज्ञानी भगवान महावीरको द्रव्य-क्षेत्र-काल-फाव-रूपसे अर्थकर्ता प्रतिपादित किया है और उसकी प्रमाण तामें कुछ प्राचीन पद्योंको भी उद्धृत किवा है। महावीरद्वारा-कथित प्रर्यको गौतम गोत्री ब्राह्मणोत्तम गौतमने अवधारित किया, जिनका नाम इन्द्रभूति था । यह गौतम सम्पूर्ण दुःश्रुतिका पारगामी था, जीवाजीव-विषयक सन्देहके निवारणार्थ श्रीवर्द्धमान महावीरके पास गया था और उनका शिष्य बन गया था। उसे वही पर उसी समय क्षयोपशम-जनित निर्मल ज्ञान-चतुष्टयकी प्राप्ति हो गई थी। इस प्रकार भाव-श्रुतपर्याय-रूप परिणत हुए इन्द्रभूति गौतम ने महावीर-कथित अर्थकी बारह अंगों-चौदह पूर्वोमें ग्रन्थ-रचना की और वे द्रव्यश्रुनके कर्ता हा । उन्होंने अपना वह द्रव्य-भाव-रूपी श्रुतज्ञान लोहाचार्य* के प्रति संचारित किया और लोहाचार्यने जम्बूस्वामीके प्रति । ये तीनों सप्तप्रकारकी लब्धियोंसे मम्पन्न थे और उन्होंने सम्पूर्ण श्रुतके पारगामी होकर केवलज्ञानको उत्पन्न करके क्रमश: निर्वृतिको प्राप्त किया था। जम्बूस्वामीके पश्चात् क्रमश: विष्णु, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्द्धन और भद्रबाहु ये पांच प्राचार्य चतुर्दश-पूर्वके धारी अर्थात् श्रुतज्ञानके पारगामी हुए । भद्रबाहुके अनन्तर विशाखाचार्य, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जयाचार्य', नागाचार्य, सिद्धार्थदेव, धृतिपेरण, विजयाचार्य, बुद्धिल्ल, गंगदेव और धर्मसेन ये क्रमशः ___* धवलके वेदना' खण्डमे भी लोहाचार्यका नाम दिया है। इन्द्रनन्दिके श्रु तावतारमें इस स्थान पर मुधर्म मुनिका नाम पाया जाता है। १, २, ३, इन्द्रनन्दि-श्रुतावतारमे जयमेन, नागसेन, विजयसेन, ऐसे पूरे नाम दिये है । जयधवलामें भी जयमेन, नागमेन-रूपसे उल्लेख है परन्तु साथमें विजय-को विजयमेन-रूपमे उल्लेखित नहीं किया। इससे मूल नामोंमें कोई अन्तर नहीं पड़ता।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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