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________________ ५ श्रुतावतार कथा ( 'धवल' और 'जयधवल' के आधार पर ) REA श्रीवीर-हिमाचलसे श्रुत- गंगाका जो निर्मल स्रोत बहा है वह अन्तिम श्रुतकेवली श्रीभद्रबाहुस्वामी तक अविच्छिन्न एक धारामें चला आया है, इसमें किसीको विवाद नही है । बादको द्वादश वर्षीय दुभिक्षादिके कारण मतभेदरूपी एक चट्टान बीचमें जाने से वह धारा दो भागों में विभाजित होगई, जिनमें से एक दिगम्बर और दूसरी श्वेताम्बर शाखाके नामसे प्रसिद्ध हुई। दोनों ही शाखाओंमें अपनी-अपनी तात्कालिक जरूरत और तरीक़तके अनुसार अवतरित श्रुतलकी रक्षाका प्रयत्न हुआ; किन्तु ग्रहरण-धारणकी शक्तिके दिनपर दिन कम होते जाने और देशकालकी परिस्थितियों अथवा रक्षरणादि-विषयक उपेक्षाके कारण कोई भी विद्वान् उस श्रुतको अपने अविकल द्वादशांग - रूप में सुरक्षित नहीं रख सका और इसलिये उसका मूल शरीर प्रायः क्षीण होता चला गया । जिस-जिस अवधिपर पुनः निबद्ध संगृहीत अथवा लिपिबद्ध होनेके कारण वह और अधिक क्षीण होनेसे बचा है उसकी कथाएँ दोनों ही सम्प्रदायोंमें पाई जाती हैं । दिगम्बर सम्प्रदायमें इस श्रुतावतारके जो भी प्रकरण उपलब्ध हैं उनमें इन्द्रनन्दिका श्रुतावतार* अधिक प्रसिद्ध है । इस श्रुतावतारमे अन्तिम अवधिके तौरपर उन ** यह ग्रन्थ माणिकचन्द दिगम्बर जैन ग्रन्थमालाके त्रयोदश ग्रन्थ 'तत्त्वानुशासनादि - संग्रह' में मुद्रित हुआ है । उसीपरसे उसके विषयोंका यहाँ उल्लेख किया गया है।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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