________________ 712 - जैनसाहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश * 20) हानिहीन, अनन्त (111). ज्ञानस्थानस्थ. मानतनन्दन 61; पावन, भजितगोतेजः, वर, नानावत, प्रक्षते, नानाश्चर्य, सुवीतागः, पुनिसुव्रत 62 / (21) नमे, मनामनमन:, नामनमन: 63; नः, दयाभ, ऋतवागोच, गोबार्तभयार्दन, अनुनुत, नतामित 65; स्वय, मेध्य, श्रिया नुतयाश्रित, दान्तेश, शुदघाऽमेय, स्वभीत 66 / (22) सद्यशः, अमेय, रुगुरो, यमेश, उद्यतसतानुत 68 / (23) ममतातीत, उत्तममतामृत, ततामितमते, तातमत, प्रतीतमृते, अमित 100 / (24) कामदेव. क्षमाजेय, श्रीमते, वर्द्धमानाय, नमोन (104) 103, श्रीम 104; सुरानत 107; वर्द्धमान, श्रेय 108; नानानन्तनुतान्त, तान्तितनिनुत, नुन्नान्त, नूतीनेन, नितान्ततानितनुते, नूतीनेन नितान्ततानितनुते, निनूत, नुतानन 106; वन्दारुप्रवलाजवंजवभयप्रध्वंमिगोप्राभव, वदिष्णो, विलसद्गुग्गार्गव, जगनिर्वाणहेतो, शिव, वन्दीभूतसमस्त देव, प्राजकदक्षस्तव. एकवन्ध. प्रभव 110; नष्टाज्ञान, मलोन, शासनगुरो, नष्टग्लान, मुमान, पावन, भासन,नत्येकेन, झजोन, सज्जनपते, अवन, सज्जिन 111; रम्य, अपारगुण, पर, मुरवररच्यं, श्रीधर रत्यून, परतिदूर, भामुर. अयं, उत्तरीश्वर, शरण्य, प्राधीर, मुधीर, विद्वर, गुरी 112; तेज:पते 114 /