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________________ 510 जनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश किया गया है और अन्यत्र प्रयोगकी सूचना से कटके भीतर प्रद्याहोंको दकर की गई है / स्तुतिविद्याके सम्बोधनपदोंको स्तवनक्रमसे ( स्तवनका नम्बर परेग्राफ़के शुरूमे ही देते हुए) रक्खा गया है और उनके स्थानकी मूचना पद्याखों-द्वारा पद्यसम्बन्धी सम्बोधनपदोंके अन्त मे तथा ब्र कटके भीतर उन्हें देकर की गई है। 1. स्वयम्भूमें प्रयुक्त पद-नाथ 14 ( 25, 57, 75, 66, 126), प्रार्य 15 ( 48, 68), प्रभो 20 (6), मुविधे 41, अनघ 46, जिन 50 (112, 114 137.141), शीतल 58. मुनीन्द्र 56 (85), महामुने 70 धीर 74 (60, 64 ), जिन वृप 75, अजिन 104, वरद 105, कृतमदनिग्रह 112, यते 11:, धीमन् 11 :, भगवन् 115, बीर 136. मुनीश्वर 138, मुमुक्षुकामद 141, देव 143 / . 2. देवागममें प्रयुक्त पद-नाच .. मुनीन्द्र 20 / 3. यक्गनशामन में प्रयुक्त पद--- जन - (.:. 35. : 4.5.2...) वीर 33, जिननाग 84. मुने छ ! 5. निविद्या प्रयत्न सम्बोधनपद- . (1) ननपीनामन. अमक. सुमन:. ऋषभ ; ग्रायं (26.85, 5.4. 8. 12); तुन 10, ई ड्य, महारवे ?: अनालितमोतोते. नतीनत: 13: येयायावाययेयाय, नानाननाननानन, अमम (63), अमिताततीनिती नित: 14: महिमाय, पद्म वामहिनायने 15 / (2) मदक्षर, अजर ( 83, 112), अजित, प्रभो (27) 16; मदक्षगजराजित, प्रभोदय, नान्नमोह ? / (3) वामेश (86, 86,68), एकाच्यं, शंभत्र 16: जिन ( 23, 61, 62), अविभ्रम 20 / (4) अनमः, अभिनन्दन ( 22, 23, 24) 21, नन्नन्द नन्त, इन ( 24. 25, 75, 86, 88, 61, 108, 111) 23; नन्दनस्वर 24 // (5) सुमते, दातः (66) 25; देव (28, 63), प्रक्षयार्जब, बर्य (54,
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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