________________ 566 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश (2) तिलोयपण्णत्तीमें अनेक काल-गणनामोंके प्राधररपर 'चतुर्मुख' नामक कल्कि 1 की मृत्यु वीरनिर्वाणसे एक हजार वर्ष बाद बतलाई है, उसका राज्यकाल 42 वर्ष दिया है, उसके अत्याचारों तथा मारे जानेकी घटनामोंका उल्लेख किया है और मृत्युपर उसके पुत्र अजितंजयका दो वर्ष तक धर्मराज्य होना लिखा है / साथ ही, बादको धर्मको क्रमशः हानि बतलाकर और किसी राजाका उल्लेख नहीं किया है / इस प्रकारको कुछ गाथाएं निम्न प्रकार है, जो कि पालकादिके राज्यकाल 658 का उल्लेख करनेके बाद दी गई है: "तत्तो कक्की जादो इन्दसुदो तस्स चउमुहो णामो। सत्तरि-वरिसा श्राऊ विगुणिय-इगवीस-रज्जत्तो ||6|| आचारांगधरादो पणहत्तरि-जुत्त दुसय-वासेसु। वोलीणेसुबद्धो पट्टा कक्की स णरव इणो // 10 // " "अह को वि असुरदेो श्रोहीदो मुणिगणाण उवसगं ! णादूणं तकाकी मारेदि हु धम्मदीहि त्ति // 103 / / कक्किसुदो अजिदंजय-णामो रक्वदि णमदि तवरणे। तं स्वखदि असुरदेो धम्मे रज्ज करेज्जति // 14 // कलिक निःसन्देह ऐतिहामिक व्यक्ति हमा है, इस बातको इतिहासज्ञोंने भी मान्य किया है / डा० के० बी० पाठक उसे 'मिहिरकुल' नामका राजा बतलाते हैं और जैनकालगणनाके साथ उसकी संगति बिठलाते है, जो बहत अत्याचारी था और जिसका वर्णन चीनी यात्री हुएन्तसाङ्गने अपने यात्रावर्णनमें विस्तारके साथ किया है तथा राजतरंगिणीमें भी गिसकी दुटताका हाल दिया है। परन्तु डा० काशीप्रसाद (केपी) जायसवाल इस मिहिरकुलको पराजितकरनेवाले मालवाधिपति विष्णुयगोधर्माको ही हिन्दू पुराणों प्रादिके अनुसार 'कल्कि' बतलाते है, जिसका विजयस्तम्भ मन्दसौरमें स्थित है और वह ई० सन् 533-34 में स्थापित हमा था। (देखो, जैनहितपो भाग 13 अंक १२में जायसवालजीका 'कल्कि-प्रवतारकी ऐतिहासिकता' और पाठकजीका 'गुप्तरराजाओंका काल, मिहिरकुल और कल्कि' नामक लेख पृ.