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________________ 576 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश ताम्बर-सम्प्रदायका प्राचार्य प्रतिपादित किया है-लिखा कि 'वे श्वेताम्बर थे, दिगम्बर नहीं' (पृ० 104) / परन्तु इस बातको सिद्ध करनेवाला कोई समर्थ कारण नहीं बतलाया, कारणरूपमें केवल इतना ही निर्देश किया है कि 'महावीरके गृहस्थाश्रम तथा चमरेन्द्रके शरणागमनकी बात सिद्धसेनने वर्णन की है जो दिगम्बरपरम्परामें मान्य नहीं किन्तु श्वेताम्बर मागमोंके द्वारा निर्विवादरूपसे मान्य है' और इसके लिये फुटनोट में ५वीं द्वात्रिशिकाके छठे और दूसरी द्वात्रिशिकाके तीसरे पद्यको देखने की प्रेरणा की है, जो निम्न प्रकार है - "अनेकजन्मान्तरमग्नमान: स्मरो यशोदाप्रिय यत्पुरस्ते / चचार नि_कशरस्तमर्थ त्वमेव विद्यासु नयज्ञ कोऽन्यः / / 5-6 / / " "कृत्वा नवं सुरवधूभयरोमहर्ष दैत्याधिपः शतमुख-भ्रकुटीवितानः / त्वत्पादशान्तिगृहसंश्रयलब्धचेता लज्जातनुद्युति हरेः कुलिशं चकार / / 2-3 . इनमेंसे प्रथम पद्यमें लिखा है कि 'हे यशोदाप्रिय ! दूसरे अनेक जन्मोमें भग्नमान हुप्रा कामदेव निर्लज्जतारूपी बारणको लिये हुए जो पापके सामने कुछ चला है उसके अर्थको प्राप ही नयके ज्ञाता जानते है, दूसरा और कौन जान सकता है ? अर्थात् यशोदाके साथ आपके वैवाहिक सम्बन्ध अथवा रहस्यको समझने के लिए हम असमर्थ है / ' दूसरे पद्य में देवाऽमुर संग्रामके रूप में एक घटनाका उल्लेख है, जिसमें दैत्याधिप असुरेन्द्रने सुरवधुपोंको भयभीतकर उनके रोंगटे खड़े कर दिये / इससे इन्द्रकी भ्रकुटी तन गई और उसने उसपर वज छोड़ा, असुरेन्द्रने भागकर वीरभगवानके चरणोंका आश्रय लिया जो कि शान्ति के धाम हैं और उनके प्रभावसे वह इन्द्रके वचको लज्जासे क्षीणा ति करने में समर्थ हुना।' ___ अलंकृत भाषामें लिखी गई इन दोनों पौराणिक घटनामोंका श्वेताम्बर. सिद्धान्तोंके साथ कोई खास सम्बन्ध नहीं है और इसलिए इनके इस रूपमें उल्नेम्व मात्रपरसे यह नहीं कहा जा सकता कि इन पद्योंके लेखक सिद्धसेन वास्तव में यशोदाके साथ भ० महावीरका विवाह होना और असुरेन्द्र ( चमरेन्द्र ) का सेना सजाकर तथा अपना भयकर रूप बनाकर युद्धके लिये स्वर्गमे जाना प्रादि मानते थे, और इसलिये श्वेताम्बर-सम्प्रदायके प्राचार्य थे; क्योंकि प्रथम तो श्वेताम्बरो.
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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