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भ० महावीर और उनका समय
४१ की है कि महावीरनिर्वाणसे ४७० वर्ष बाद जिस विक्रमकालका उल्लेख जनग्रन्थोंमें पाया जाता है वह प्रचलित सनन्द-विक्रमसंवत् न होकर अनन्द-विक्रमसंवत् होना चाहिये, जिसका उपयोग १२ वीं शताब्दीके प्रसिद्ध कवि चन्दवरदाई ने अपने काव्यमें किया है और जिसका प्रारम्भ ईसवी सन् ३३ के लगभग अथवा यों कहिये कि पहले ( प्रचलित ) विक्रम संवत्के ६० या ६१ वर्ष बाद हुआ है। और इस तरह पर यह सुझाया है कि प्रचलित वीरनिर्वाणसंवत्मेंसे ६० वर्ष कम होने चाहिये- अर्थात् महावीरका निर्वाण ईसवी सन्से ५२७ वर्ष पहले न मानकर ४३७ वर्ष पहले मानना चाहिये, जो किसी तरह भी मान्य किये जानेके योग्य नहीं । आपने यह तो स्वीकार किया है कि प्रचलित विक्रमसंवत्की गणनानुमार वीरनिर्वाण ई० सन्मे ५२७ वर्ष पहले ही बैठता है परन्तु इसे महज इस बुनियाद पर असंभवित करार दे दिया है कि इससे महावीरका निर्वाण बुद्धनिर्वाणसे पहले ठहरता है, जो आपको इष्ट नही । परन्तु इस तरह पर उसे असंभवित करार नहीं दिया जा सकता, क्योंकि बुद्धनिर्वाण ई० सन्से ५४४ वर्ष पहले भी माना जाता है, जिसका आपने कोई निराकरण नहीं किया। और इसलिये बुद्ध का निर्वाण महावीरके निर्वाणसे पहले होने पर भी आपके इस कथनका मुख्य आधार आपकी यह मान्यता ही रह जाती है कि बुद्ध-निर्वाण ई० सन्से पूर्व ४८५ और ४५३के मध्यवर्ती किसी समयमें हुमा है, जिसके समर्थन में आपने कोई भी सबल प्रमाण उपस्थित नहीं किया और इसलिये वह मान्य किये जानेके योग्य नहीं । इसके सिवाय, अनन्द-विक्रम-संवत्की जिस कल्पनाको आपने अपनाया है वह कल्पना ही निर्मूल है-अनन्दविक्रम नामका कोई संवत् कभी प्रचलित नहीं हुआ और न चन्दवरदाईके नामसे प्रसिद्ध होने वाले 'पृथ्वीराजरासे' में ही उसका उल्लेख है-और इस बातको जाननेके लिये रायबहादुर पं० गौरीशंकर हीराचन्दजी अोझाका 'अनन्द-विक्रम संवत्की कल्पना' नामका वह लेख पर्याप्त है जो नागरी प्रचारिणी पत्रिकाके प्रथम भागमें, पृ० ३७७ से ४५४ तक मुद्रित हुआ है।
अब मैं एक बात यहाँ पर और भी बतला देना चाहता हूँ और वह यह कि बुद्धदेव भगवान् महावीरके समकालीन थे। कुछ विद्वानोंने बौद्ध ग्रंथ मज्झिमनिकाय