________________ भगवती आराधनाकी दूसरी प्राचीन टीका-टिप्पणियाँ 461 तान्यो-“मिथ्यात्वमश्रद्धान तत्मेवायां मिथ्याटिरेवासाविति नातिचारिता" इति / -सम्मत्तादीचारागा०४८ (8) "एतां (गवमम्मिय जं पुव्वं० गा०५६५) श्रीविजयो नेच्छति / ' (6) एते (सल्लेहणाग 681, पगम्मि भवग्गहणे० 682) श्रीविजयाचार्यो नेच्छति / " (10) "श्रीविजयाचार्याऽत्र प्राणापायविवागविचयोनामधर्मध्यानं 'प्राणापाय' इत्यस्मिनराटं त्यायविचयो नामति व्याख्यन्।" -कल्लागावगाग्ग गा०१:१२ (11) "श्रीविन यस्तु 'दिम्मदि दंता व व्यरोनि' पाठं मन्यमाना ज्ञायते / " -जदिनम्म उनमग गा०१९हर उपयुक्त उम्ने खाम विजयानायके नामम जिन वाक्योका अथवा विशेषताप्राका कथन किया गया है वे मन प्रगजिनमरिकी उक्त टीकामे व्यों की त्यो पाई जाती है। जिन गाथाग्रीको प्रागजिनमरि ( श्रीविजय ) ने न मानकर उनको टीका नही दी है उनके विजय प्राय टम प्रकार के वाक्य दिये है"अत्रं यं गाथा मूत्र ऽनुश्रयने", अत्रं में गाथे मृत्र ऽनुश्रयेन / ' सो हाल में श्रीविजय प्रोर प्रागजिनको नाम कोई मादेश नहीं हना। प्रामा है माहित्य-प्रेमी मोर जिनवागीके भक्त महाशय गोघ्र ही उक्त प्राकृनटीका मोर दोनो टिम प्राने प्रश्न यहाँके शास्त्र-भण्डागर्म खोजनेका पूरा प्रयत्न करेंगे। जो भाई बोजार पन अन्योको देखने के लिये मेरे पास भेजेंगे उनका में बहुत प्रभागेगा पोर उन ग्रन्यो परमे और नई नई नपा निदिचन बान बोल कर उनके मामने रसगा / अपने पुरातन माहिन्यकी रक्षा पर सबको ध्यान देना चाहिये / यह हम समय बहुत ही बड़ा पुण्य कार्य है / मन्यांके नष्ट होजाने पर किमी मूल्य पर भी उनकी प्रामि नहीं हो सकेगी पोर फिर मिवाय पचनान के मोर कुछ भी पशिष्ट नहीं रहेगा / अनः ममय रहते मयको पेन जाना चाहिए।