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भ० महावीर और उनका समय उद्धृत किया गया है अथवा किसी प्राचीन गाथा परसे अनुवादित किया गया है। अस्तु; इस श्लोकमें बतलाया है कि 'महावीरके निर्वाणसे १५५ वर्ष बाद चंद्रगुप्त राज्यारूढ़ हुआ'। और यह समय इतिहासके बहुत ही अनुकूल जान पड़ता है। विचारोगिकी उक्त कालगणनामें १५५ वर्ष का समय मिर्फ नन्दोंका और उस से पहले ६० वर्षका समय पालकका दिया है। उसके अनुसार चन्द्रगुप्तका राज्यारोहग्ग-काल वीरनिर्वाणमे २१५ वर्ष बाद होता था परन्तु यहां १५५ वर्ष बाद बतलाया है, जिससे ६० वर्ष की कमी पड़ती है। मेस्तुगाचार्यने भी इस कमीको महसूस किया है । परन्तु वे हेम चन्द्राचार्य के इस कथनको ग़लत साबित नहीं कर सकते थे और दूसरे ग्रन्यों के माथ उन्हें माफ़ विरोध नज़र पाता था, इसलिये उन्होंने 'तचिन्त्यम्' कहकर ही इस विषयको छोड़ दिया है। परन्तु मामला बहुत कुछ स्पष्ट जान पड़ता है । हेमचन्द्रने ६० वर्षकी यह कमी नन्दोंके राज्यकाल में की है उनका राजकाल ६५ वर्षका बतलाया है-कमोंकि नन्दोंसे पहिले उनके और वीरनिर्वाण वी वमें ६० वर्षका ममय कूगिक आदि राजाओं-' का उन्होंने माना ही है। ऐपा मालूम होता है कि पहलेमे वीरनिर्वाणके बाद १५५ वर्षके भीतर नन्दोंका होना माना जाता था परन्तु उसका यह अभिप्राय नहीं था कि बीरनिर्वाणके ठीक बाद नन्दों का राज्य प्रारम्भ हुना, बल्कि उनसे पहिले उदायी तया कूगिकका राज्य भी उममें शामिल था। परन्तु इन राज्योंकी अलग अलग वर्ष-गणना मायमे न रहने प्रादिके कारण बादको गलनीमे १५५ वर्षकी संख्या अके ने नन्दराज्यके लिये रूट हो गई । और उधर पालक राजाके उसी निरिण-रात्रिको अभिषिक्त होनेकी जो महज एक दूसरे राज्यकी विशिष्ट घटना थी उसके माथमे राज्यकालके ६० वर्ष जुडकर वह गलती इधरं मगधकी काल गणनामें शामिल हो गई। इस तरह दो भूनोंके कारण कालगणनामें ६० वर्षको वृद्धि हुई और उसके फलस्वरूप वीरनिर्वाणसे ४७० वर्ष बाद विक्रमका राज्याभिषेक माना जाने लगा । हेमचन्द्राचार्यने इन भूलोंको मालूम किया और उनका उक्त प्रकारमे दो इनोकों में ही सुधार कर दिया है। बरिष्टर काशीप्रमाद ( के. पी. ) जी जायसवालने, जान चाटियरके लेखका विरोध करते हुए, हेमचन्द्राचार्य पर जो यह प्रापति की है कि उन्होंने महावीरके निर्वाणके बाद तुरन्त ही नन्दवंशका राज्य बतला दिया है, और इस कल्पित