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________________ 426 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश , जिनकी महानताका संबोतन जिस रूप में किया गया है, उसका पूर्ण परिचय तो पूरे अन्यको बहुत दत्तावधानके साथ अनेक बार पढ़ने-पर ही ज्ञात हो सकेगा, यहाँ पर संक्षेपमें कुछ थोड़ा-सा ही परिचय कराया जाता है और उसके लिये ग्रन्थकी निम्न दो कारिकाएं खास तौरसे उल्लेखनीय हैत्वं शुद्धि-शक्त्योरुदयस्य काष्ठां तुला-व्यतीतां जिन ! शान्तिरूपाम / प्रयापिथ ब्रह्मपथस्य नेता महानितीयत्प्रतिवक्तुमाशा: // 4 // दय-दम-त्याग-समाधि-निष्ठं नय-प्रमाण - प्रकृताऽऽनसाथम / अधष्यमन्यैर खिलैः प्रवाद-निन ! त्वदीयं मतमद्वितीयम् // 6 // ___इनमेंसे पहली कारिकामें श्रीवीरकी महानताका प्रोर दूसरी में उनके शासनकी महानताका उल्लेख है। श्रीवीरकी महानताको इम रूपमें प्रदर्शित किया है कि 'वे अतुलिन शान्तिके माथ शुद्धि और शक्तिको पराकाष्ठाको प्राप्त हुए है-उन्होंने मोहनीयकमका प्रभाव कर अनुपम मुख-शान्तिकी, ज्ञानावरण दर्शनावरण कर्मोका नाश कर मनन शानदर्शनरूप शुद्धि के उदयकी और मन्नराय कर्मका विनाश कर अनन्तवीर्यमा शक्तिके उत्कर्षको नरम सीमाको प्राप्त किया है-और साथ ही ब्रह्मपथके--हिसात्मक प्रामविकासपद्धति अथवा मोक्षमार्गके वे नेता बने हैं--उन्होंने अपने प्रादगं एवं उपशादि द्वारा दुमगेको उस सन्मार्ग पर लगाया है जो शुद्धि, शक्ति तथा शान्ति के परमोदयरूपमें मात्मविकासका परम सहायक है।' और उनके शासनकी महानताके विषयमें बतलाया है कि वह दया (अहिंसा), दम (संयम), न्यान (परिग्रह-न्यजन) और समाधि (प्रशस्तध्यान) की निष्ठा-तत्परताको लिये हुए है, नयों तथा प्रमारणोंके द्वारा वस्तुतत्त्वको बिल्कुल स्पष्ट-मुनिश्चित करने वाला है और (भनेकान्तवादसे भिन्न ) दूसरे सभी प्रवादोंके द्वारा प्रा है-कोई भी उसके विषयको संडित अथवा दूषित करने में समर्थ नहीं है / यही सब उसकी विशेषता है और इसलिये वह अद्वितीय है। प्रगली करिकामोंमें सूत्ररूपसे वरिणत इस वीरशामनके महत्त्वको पोर उसके द्वारा वीरजिनेन्द्रकी महानताको स्पष्ट करके बतलाया गया है-खास तोरसे यह प्रदर्शित किया गया है कि बीरजिन-द्वारा इस शासनमें परिणत
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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