________________ 400 जनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश (119) / मनुष्यके शरीरका इन्द्रियों को शान्तताको लिये हुए माभूषण, वेष तथा (वस्त्र प्रावरणादिरूप ) व्यवधानसे रहित प्रपने प्राकृतिक (दिगम्बर) रूप होना और फलतः काम-कोषका पासमें न फटकना निर्मोही होनेका सूचक है पोर जो निर्मोही होता है वही शान्ति-सुखका स्थान होता है (120) / (22) परमयोगरूप शुक्लध्यानाम्निसे कल्मपन्धनको-मानावरणादिरूप कर्मकाष्टको-भस्म किया जाता है, उसके भस्म होते ही मानकी विपुलकिरणे प्रकट होती है, जिनसे सकल जगतको प्रतिबुद्ध किया जाना है (121) / और ऐसा करके ही अनवद्य (निदोष) विनय और दमरूप तीर्थका नायकत्व प्राप्त होता है (123) / केवलज्ञान द्वारा पखिल विश्वको युगपत् करतमामलकवत् जानने में बाह्यकरण चक्षुरादिक इन्द्रियों और अन्त:करण मन ये ममग-अलग तथा दोनों मिलकर भी न तो कोई बाधा उत्पन्न करते हैं और न किसी प्रकार. का उपकार ही सम्मन्न करते है (130) / (23) जो योगनिष्ठ महामना होते है वे घोर उपद्रव मानेपर भी पावं. जिनके समान अपने उस योगमे चलायमान नहीं होने (1) / अपने योग(शुक्लध्यान) रूप खड्गकी तोक्षणधारमे दुय मोहनका पान करके वह पाहंन्त्यपद प्राप्त किया जाता है जो अद्भुत है पोर त्रिलोकको पूजानिमयका म्यान है (133) / जो समग्रवी (सर्वज ) मच्ची विद्यापों तथा तपस्यापोंका प्रणायक पौर मिथ्यादर्शनादिरूप कुमागोको रपियोंये उत्पन्न होनेवाले विभ्रमांका विनाशक होता है वह सदा वन्दनीय होना है (130) / (24) गुण-समुत्य-कीति गोभाका कारण होमी 1 (139) / जिनद गुणों में जो अनुशासन प्राप्त करते है--- उन्हें अपने प्रारमा विकसित करनक लिये प्रात्मीय दोषों को दूर करनेका पूर्ण प्रयत्न करते है-वे विगत-भव होने है। -संसार परिभ्रमणसे सदाके लिए छूट जाते है / होप पावककी तरह पीटन शील है (137) / 'स्यात्' शब्द-पुरस्सर कपनको लिए हए को 'स्वाहा:-प्रकान्तारमा प्रवचन है-यह निदोष है, क्योंकि इष्ट (प्राय) और (भागमारिक) प्रमाणोंके साथ उसका कोई विरोध नहीं है। 'म्यात्म -पूर्वक बनते रहिम जो सर्वथा एमन्छयाय है यह नियाव प्रपन महीकि रट और राष्ट