________________ ... 375 समन्तभद्रका स्वयम्भूस्तोत्र निग्रह-विग्रहः 112; शशि-रुचि-शुचि-शुक्ल-लोहित-वपुः, सुरभितर-विरजवाः, यति: 113; वदतांवर: 114; प्रभवसौख्यंवान् 115 / / (21) सततमभिपूज्य:, नमि-जिनः 116; धीमान, ब्रह्म-प्ररिणधिमनाः, विदुषां मोक्ष-पदवी 117: सकल-भुवन-ज्येष्ठ-गुरु: 118; परमकग: 116; भूषा-वेष-व्यवधि-रहित-वपुः, शान्तकरणः, निर्मोहः, शान्तिनिलय: 120 / (22) परम-योग-दहन-हुत-कल्मपन्धन: 121; अनवद्य-विनय-दम-तीर्यनायकः, शीलजलधि:, विभवः, अरिष्टनेमिः, जिनकुञ्जरः, प्रजर: 122; बुधनुतः 130 / (23) महामना 131: ईश्वरः, विधूत-कल्मपः, शमोपदेशः 134; मत्यविद्या-तपसां प्रणायकः, समग्रधी:, पार्वजिन:, विलीनमिय्यापथ-दृष्टिविभ्रम: 135 / (24) वीर: 136; मुनीश्वर : 138; मुरासुर-महितः, ग्रन्थिक-सत्वाऽशयप्रगामा:हिनः, लोक जय-परम-हित:, अनावरण-ज्योति:, उज्ज्वलधामहित: 136; गत-मर-मायः, मुमुक्ष-कामदः 141, गम-बादानवन्, अपगत. प्रमा-दानवान 142: देवः, ममन्तभद्र-मन: 143 / इन विशेषण-पदाको पाठ समूहो अथवा विभागोमें विभाजित किया जा सकता है; जमे 1 कम कला और दोपों पर विजय के मूचक, 2 ज्ञानादि गुग्गीकर्ष व्य नक, 3 परहित-प्रतिपादनादिरूप लोकहितपिनामूलक, 4 पूज्यताऽभिव्यंजक, 5 भासतकी महनाके प्रदर्शक, . शारीरिक स्थिति पोर अभ्युदयके निदर्शक, साधनाकी प्रधानताके प्रकाशक, और = मिश्रित-गुणांक वाचक / ये सब विशेषाद एक प्रकारसे अहंन्नोंके नाम है जो उनके किसी-किसी गुण अथवा गुग्गममूहकी अपेक्षाको साथमें लिये हुए है। यद्यपि इन विशेषण. पदों में कितने ही विशेषगरद-मे माधः, मुनिः, यति: ग्रादिक-साधारण अथवा मामान्य जान पड़ते है। क्योंकि वे अहं पदसे रहित दूसरों के लिए भी प्रयुक्त होते है। परन्तु उन्हें यहा साधारण नहीं समझना चाहिये; क्योकि मसाधारण व्यक्तित्वको लिये हुए महान पुरुषों के लिए जब साधारण विशेषण प्रयुक्त होते है तब वे 'माश्रयाज्जायते लोक नि:प्रभोऽपि महाद्युति:' की उक्तिके अनुमार मायके माहात्म्यसे असाधारण प्रथंके घोतक होते है-उनका प्रर्थ अपनी