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________________ समन्तभद्रके ग्रन्थोंका संक्षिप्त परिचय स्वामी समन्तभद्राचार्यने कुल कितने ग्रन्थोंकी रचना की, वे किस किस विषय अथवा नामके ग्रन्थ है, प्रत्येककी श्लोकसंख्या क्या है, और उनपर किन किन प्राचार्यों तथा विद्वानोंने टीका-टिप्पण अथवा भाष्य लिखे है; इन सब बातोंका पूरा विवरण देनेके लिये, यद्यपि साधनाभावमे, मैं तय्यार नहीं हूँ फिर भी आचार्यमहोदयके बनाये हुए जो जो ग्रन्थ इस समय उपलब्ध होते है और जिनका पता चलता या उल्लेख मिलता है उन मबका कुछ परिचय अथवा यथावश्यकता उनपर कुछ विचार नीचे प्रस्तुत किया जाता है: १ प्राप्तमीमांसा समन्तभद्रके उपलब्ध ग्रन्थोमे यह सबमे प्रधान ग्रन्थ है और ग्रन्थका यह नाम उसके विषयका स्पष्ट द्योतक है। इसे 'देवागम' स्तोत्र भी कहते हैं। 'भक्तामर' प्रादि कितने ही स्तोत्रोंके नाम जिस प्रकार उनके कुछ प्राध प्रक्षरोंपर अवलम्बित है उसी प्रकार 'देवागम' शब्दोंसे प्रारम्भ होनेके कारगा यह ग्रन्थ भी 'देवागम' कहा जाता है: अथवा अर्हन्लदेवका मागम इसके द्वारा व्यक्त होना है-उसका तत्त्व साफ़ तौर पर समझमें प्राजाता है और यह उसके रहस्यको लिये हुए है, इसमे भी यह अन्य 'देवागम' कहलाता है। इस ग्रन्थके श्लोकों अथवा कारिकाओंकी संख्या ११४ है । परन्तु 'इतीयमाप्रमीमांसा' नामके पर नं० ११४ के बाद 'वसुनन्दी' प्राचार्यनं, अपनी 'देवागमवृत्ति' में, नीचे लिखा पद्य भी दिया है जयति जगति क्लेशावेशप्रपंचहिमांशुमान् विहतविषमैकान्तध्वान्तप्रमाणनयांशुमान् ।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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