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________________ . स्वामी समन्तभद्र धर्मशास्त्री, तार्किक और योगी तीनों थे AN अनेकान्तकी पिछली किरण (वर्ष ७ नं. ३-४) में मुहद्वर पं० नाथूरामजी प्रेमीका एक लेख प्रकाशित हुआ है जिसका शीर्षक है 'क्या रत्नकरण्डके कर्ना स्वामी समन्तभद्र ही है ?' इस लेखमें 'रत्नकरण्डश्रावकाचार' पर स्वामी ममन्तभद्रके कर्तृत्वकी आशंका करते हए प्रेमीजीने वादिराजसूरिके पाश्र्वनाथचरितमे 'स्वामिनश्चरितं तस्य', 'अचिन्त्यमहिमादेवः', 'त्यागी स एव योगीन्द्रो' इन तीन पद्योंको इमी क्रममे एक माथ उद्धृत किया है और बतलाया है कि इसमें कमशः स्वामी, देव और योगीन्द्र इन तीन प्राचार्योंकी स्तुति उनके अलग-अलग ग्रन्थों दिवागम, जनेन्द्र, रत्नकरण्डक) के संकेत सहित की गई है। 'स्वामी' तथा 'योगीन्द्र' नाम न होकर उपपद है पीर 'देव' जनेन्द्रव्याकरणके कर्ता देवनन्दीके नामका एक देश है। स्वामी पद देवागमके कर्ता स्वामी समन्तभद्रका वाचक है और 'योगीन्द्र' पद, बीचमे देवनन्दीका नाम पड़ जानेमे, स्वामी समन्तभद्रमे भिन्न किमी दूसरे ही आचार्यका वाचक है और इसलिये वे दूसरे प्राचार्य ही 'रत्नकरण्ड' के कर्ता होने चाहिये । परन्तु योगीन्द्र' पदके वाच्य वे दूसरे प्राचार्य कौन है यह आपने बतलाया नहीं । हाँ, इतनी कल्पना जरूर की है कि-"असली नाम रत्नकरण्डके कर्ताका भी समन्तभद्र हो सकता है, जो स्वामी समन्तभद्रमे पृथक् शायद दूसरे ही समन्तभद्र हों। यह कल्पना भी पापकी ( 'हो सकता है', 'शायद' मोर 'हों' जैसे शब्दोंके प्रयोगको लिये रहने
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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