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समन्तभद्रका मुनिजीवन और आपत्काल २३६ पार्श्वनाथका बिम्ब प्रकट होनेकी बात लिखी है। परन्तु उनका यह खयाल गलत था और उसका निरसन श्रवणबेलगोलके उस मल्लिपेणप्रशस्ति नामक शिलालेखसे भले प्रकार हो जाता है, जिसका 'वंद्यो भस्मक' नामका प्रकृत पद्य ऊपर उद्धृत किया जा चुका है और जो उक्त प्रभावकचरितसे १५६ वर्ष पहिलेका लिम्बा हया है--प्रभावकरितका निर्माणकाल वि० सं० १३३४ है और गिलालेख शक संवत् १०६० (वि० सं० ११८५ ) का लिखा हुअा है। इससे स्पष्ट है कि चन्द्रप्रभ-बिम्बके प्रकट होनकी बात उक्त कथापरमे नही ली गई बलि वह समन्तभद्रकी कथाम खास तौरपर सम्बन्ध रखती है । दूसरे एक प्रकारकी घटनाका दो स्थानोंपर होना कोई अस्वाभाविक भी नहीं है। हाँ, यह हो सकता है कि नमस्कारके लिये प्राग्रह प्रादिकी बात उक्त कथा परमे ले ली गई हो। क्योंकि 'गजावलिकथे' प्रादिमे उसका कोई समर्थन नहीं होता, और न ममन्तभद्रके सम्बन्धमें वह कुछ युक्तियुक्त ही प्रतीत होती है । इन्ही सब कारणोमे मेग यह कहना है कि ब्रह्म नेमिदनने 'गिवकोटि' को जो वागगामी का गजा लिम्बा है वह कुछ ठीक प्रतीत नही होता: उसके अस्तित्वकी सम्भावना अधिकतर का चीकी पार ही पाई जाती है, जो ममन्तभद्रके निवासादिका प्रधान प्रदेश रहा है। अस्तु ।
शिवकाटिने समन्तभद्रका गिप्य होने पर क्या क्या कार्य किये और कोन कौनगे ग्रन्थाकी रचना की. यह सब एक जुदा हा विषय है जो खास गिवकोटि प्राचार्य के चरित्र अथवा इतिहास सम्बन्ध रखता है, और इसलिये मै यहाँ पर उसकी कोई विशेष चर्चा करना उचित नहीं समझता ।
'शिवकोटि' और 'शिवायन' के सिवाय समन्तभद्रके और भी बहत मे
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ॐ प्रभाचन्द्रभट्टारक का गद्य कथाकोश, जिसके आधार पर नेमिदत्तने अपने ब.थाकोगकी रचना की है, 'प्रभावकारत' से पहलेका बना हुआ है अत: यह भी हो सकता है कि उमपरमे ही प्रभावचरितमें यह बात ले ली गई हो। परन्तु साहित्य की एकतादि कुछ विशेष प्रमाणोंके बिना दोनों ही के सम्बन्धमें यह कोई लाजिमी बात नहीं है कि एकने दूमरेकी नकल ही की हो; क्योंकि एक प्रकारके विचारोंका दो ग्रन्थकर्तामोंके हृदयमें उदय होना भी कोई असंभव नहीं है। .
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