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स्वामी समन्तभद्रका मुनिजीवन और आपत्काल २३३ होगया और उस स्थानसे 'चन्द्रप्रभ' भगवानकी चतुर्मुखी प्रतिमा महान् जयकोलाहलके साथ प्रकट हुई । यह देखकर राजादिकको बड़ा आश्चर्य हुप्रा और राजाने उसी समय ममन्तभद्रसे पूछा-हे योगीन्द्र, पाप महासामर्थ्यवान् अव्यक्तलिंगी कौन है ? इसके उत्तरमें समन्तभद्रने नीचे लिखे दो काव्य कहे
कांच्या नग्नाटकोऽहं मलमलिनतनुर्लाम्बुशे पाण्डुपिंडः । पुण्ड्रोएड्र शाक्यभिक्षुः दशपुरनगरे मृष्टभाजी परित्राट् । वारागाभ्यामभूवं शशिधरधवलः पाण्डुरांगतपस्वी, राजन यस्याम्ति शक्ति:, सवदतः पुरता जैननिथवादी ।।
पूर्व पाटलिपुत्रमध्यनगर भेरी मया ताडिता, पश्चान्मालवसिन्धुठक्कविषय कांचीपुरे वैदिश, प्रामोऽहं करहाटकं बहुभट विद्यात्कटं संकटं,
वादार्थी विचराम्यहं नरपते शालविक्रीडितं ।। इसके बाद ममनभद्र ने लिंग छोडकर जैन निग्रंथ लिग धारण किया और संप्रग एकानवादियों को बाद में जीनकर जनगायनकी प्रभावना की। यह मब देवकर राजा को जयम में श्रद्धा होगई, वैराग्य हो पाया और राज्य छोड़ कर उसने जिनदीक्षा धारण करली ४ ।"
* संभव है कि यह 'Tोड़े' पाठ हो, जिमने 'पुण्ड'–उनर बंगाल-और 'उड़ --- उडीमा ---दोनों का अभिप्राय जान पड़ता है।
+ कहीं पर 'गाधरधवल: भी पाठ है जिसका अर्थ चन्द्रमाके ममान उज्वन होता है।
+ प्रवदतु भी पाठ कही कहो पर पाया जाता है।
x ब्रह्म नमिदन के कथनानुमार उनका कथाकोग भट्टारक प्रभाचन्द्र के उस कथाकोगके प्राधारपर बना हुआ है जो गद्यात्मक है और जिसको पूरी तरह देवनका मुझे अभी तक कोई प्रवमर नही मिल सका । सुहृदर पं० नाथूरामजी प्रेमीन मेरी प्रेग्णाने, दोनों कथाकोगोंमे दी हुई समन्तभद्रकी कथाका परस्पर मिलान किया है और उसे प्रायः समान पाया है। आप लिखते हैं.---"दोनोंमें कोई विशेष फर्क नहीं है । नेमिदतको कथा प्रभानन्द्रकी गद्यकथाका प्रायः पूर्ण