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________________ rrrrrrrrrrrna समन्तभद्रका मुनिजीवन और आपत्काल २१६ की कि-'अब पाप कृपाकर मुझे सल्लेखना धारण करनेकी आज्ञा प्रदान करें और यह आशीर्वाद देवें कि मै साहसपूर्वक और सहर्ष उमका निर्वाह करनेमें ममर्थ हो सकू।' ममन्तभद्रकी इस विज्ञापना और प्रार्थनाको सुनकर गुरुजी कुछ देरके लिये मौन रहे, उन्होंने ममन्तभद्रके मुखमंडल (चहरे) पर एक गंभीर दृष्टि डाली और फिर अपने योग बलसे मालूम किया कि समन्तभद्र अल्पायु नहीं है, उसके द्वारा धर्म तथा शामनके उद्धारका महान् कार्य होनको है, इस दृष्टिसे वह सल्लेखनाका पात्र नहीं; यदि उसे सल्लेखनाकी इजाजत दी गई तो वह अकालमें ही कालके गालम चला जायगा और उममे श्री वीरभगवानके गासन-कार्यको बहुत बड़ी हानि पहुचेगी; माथ ही, लोकका भी बड़ा अहित होगा। यह मब मोचकर गुरुजीने, समन्तभद्रकी प्रार्थनाको अस्वीकार करते हए, उन्हें बड़े ही प्रेमके माथ ममझाकर कहा- 'वत्म, अभी तुम्हारी मल्लेम्वनाका समय नहीं पाया, तुम्हारे द्वारा गागन कार्य के उद्धारकी मुझे बड़ी पाया है, निश्चय ही तुम धर्मका उद्धार और प्रचार करोगे, ऐमा मंग अन्तःकरण कहता है: लोकको भी इम ममय तुम्हारी बड़ी जरत है; दलिये मेरी यह खास इच्छा है ग्रार यही मेरी प्राज्ञा है कि तुम जहाँपर पोर जिम वेपमे रहकर रोगोपशमनके योग्य तृप्तिपर्यन्त भोजन प्राप्त कर मका वहीपर बुगामे न जागो और उमी वेगको धारण करलो, गेगके उपशान्त होनेगर फिर मे जैनमुनिदीला धागा कर लेना और अपने मब कामोको मंभाल लेना । मुभं. तुम्हारी श्रद्धा और गुगाजतापर पूग विश्वास है, इसीलिये मुझे यह कहनेमे ज़रा भी संकोच नहीं होता कि तुम चाहे जहां जा सकते हो और चाहे जिम वेपको धारण कर मकने होः मै स्खुशीमें तुम्हे ऐमा करने की इजाजत देना हूँ। गुरुजीके इन मधुर नथा मागभिन वचनोको मुनकर और अपने अन्तःकरण की उम अावाजको स्मरण करके ममन्तभद्रको यह निश्चय हो गया कि इमोमें जरूर कुछ हित है, इसलिये आपने अपने मल्लेबनाके विचारको छोड़ दिया और गुरूजीकी प्राज्ञाको शिरोधारण कर आप उनके पासमे चल दिये। ___अब समन्तभद्रको यह चिन्ता हुई कि दिगम्बर मुनिवेषको यदि छोड़ा जाय तो फिर कौनसा वेष धारण किया जाय, और वह वेष जैन हो या अजन । अपने
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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