________________
स्वामी समन्तभद्र
१८७ "....भद्रबाहुस्वामि गलिद् इत्तकलिकाल वर्तनयिं गणभेदं पुट्टिदुद् अवर अन्वयक्रमर्दिकलिकालगणधरु शास्त्रकत्तुंगलुम् एनिसिद समन्तभद्रस्वामिगल।"
ममन्तभद्रने जिम स्याद्वादशासनको कलिकालमें प्रभावित किया है उसे भट्टाक्लंकदेवने, अपने उक्त पद्यमें, 'पुण्योदधि' की उपमा दी है। साथ ही, उसे 'तीर्थ लिखा है और यह प्रकट किया है कि वह भव्यजीवोंके आन्तरिक मलको दूर करनेवाला है और इसी उद्देश्य से प्रभावित किया गया है । भट्टाकलंकका यह सव लेख ममन्तभद्रके उम वचनतीर्थको लक्ष्य करके ही लिखा गया है जिसका भाष्य लिखनके लिये आप उस वक्त दत्तावधान थे और जिसके प्रभावमे 'पात्रकेमरी' जैसे प्रखर तार्किक विद्वान् भी जैनधर्मको धारण करने में समर्थ हो सके है।
भट्टाकलंकके इस सब कथनमे समन्तभद्रके वचनोंका अद्वितीय माहात्म्य प्रकट होता है । वे प्रौढत्व, उदारता और अर्थगौरवको लिये हा होनेके अतिरिक्त कुछ दूमरी ही महिमाम सम्पन्न थे । इमीमे बड़े बड़े प्राचार्यों तथा विद्वानोने आपके वचनोकी महिमाका खुला गान किया है । नीचे उमीके कुछ नमूने और दिये जाते है, जिनमे पाठकोंको ममंतभद्रके वचनमाहात्म्यको समझने और उनके गुग्गोका विशेष अनुभव प्राप्त करनेमे और भी ज्यादह सहायता मिल सकेगी। साथ ही, यह भी मालूम हा मकेगा कि समंतभद्र की वचनप्रवृत्ति, परिरणति और स्याद्वादविद्याको पुनरुज्जीवित करने आदिके विषय में ऊपर जो कुछ कहा गया है अथवा अनुमान किया गया है वह सब प्रायः ठीक ही है
नित्यायेकान्तगर्तप्रपतनविवशान्प्राणिनोऽनर्थसार्थाद्उद्धतु नतुमुच्चैः पदममलमलं मंगलानामलंध्यं । स्याद्वादन्यायवर्ती प्रथयद वितथार्थ वचः स्वामिनादः
प्रेक्षावत्वात्प्रवृत्तं जयतु विघटिताऽशेषमिथ्याप्रवाद ।।-अष्टसहस्री इस पद्यमे, विक्रमकी प्रायः ६ वी शताब्दीके दिग्गज तार्किक विद्वान् ___ माप पहले पजैन थे, 'देवागम' को सुनकर आपकी श्रद्धा बदल गई पौर मापने जैनदीक्षा धारण की।