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स्वामी समन्तभद्र कुछ सफल हो मके और कलिकाल उसमें कोई विशेष बाधा नहीं डाल सका। वसुनन्दि सैद्धान्तिकने तो अापके मतकी-शासनकी-वंदना और स्तुति करते हुए यहाँ तक लिखा है कि उस शासनने कालदोषको ही नष्ट कर दिया था—अर्थात् समन्तभद्रमुनिके शासन-कालमें यह मालूम नही होता था कि आजकल कलिकाल बीत रहा है । यथा
लक्ष्मीभृत्परमं निमत्तिनिरतं निर्वाणसौख्यप्रदं कुज्ञानासपवारणायविधृतं छत्रं यथा भासुरं । सज्ञानर्नययुक्तिमौक्तिकफलैः संशोभमानं परं वन्दे तद्धतकालदीपममलं सामन्तभद्र मतम ॥॥
-देवागमवृत्ति इम पद्यमें ममन्नभद्र के 'मन' को, लक्ष्मीभत् परम निर्वाग्गसौख्यप्रद हतकालदोप और अमल ग्रादि विशेषणोंके माथ स्मरगा करते हए, जो देदीप्यमान छत्रकी उपमा दी गई है वह बडी ही हृदयग्राहिणी है, और उसमे मालूम होता है कि ममन्नभद्रका गामनछत्र सम्यग्जानों.मुनयों तथा मयुक्तियों रूपी मुक्ताफलोंमे संशोभित है और वह उसे धारण करनेवालेके कुज्ञानरूपी आतापको मिटा देने वाला है। इस मब कथनमें स्पष्ट है कि ममन्तभद्रका म्याहादशामन बड़ा ही प्रभावशाली था। उसके तेजके मामने अवश्य ही कलिकालका तेज मन्द पड़ गया था, और इमलिये कलिकालम स्पादाद तीर्थको प्रभावित करना, यह समन्तभद्रका ही एक खास काम था ।
दूसरे अर्थ के सम्बन्धमें मिर्फ इतना ही मान लेना ज्यादा अच्छा मालूम होता है कि समन्तभद्रमे पहले स्याहादतीर्थकी महिमा लुप्तप्राय हो गई थी, ममन्तभद्रने उमे पुन: संजीवित किया है, और उसमे असाधारण बल तथा शक्तिका संचार किया है । श्रवणबेल्गोलके निम्न शिलावाक्यसे भी ऐसा ही ध्वनित होता है, जिसमे यह मूचित किया गया है कि मुनिसंघके नायक आचार्य समन्तभद्रके द्वारा सर्वहितकारी जैनमार्ग ( स्याहादमार्ग) इम कलिकालमे सब पोरसे भद्ररूप हुप्रा है-अर्थात् उसका प्रभाव मवंत्र व्याप्त होनसे वह सबका हितकरनेवाला पौर सबका प्रेमपात्र बना है