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१५८ जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश अपने अन्तःकरणकी आवाज़से प्रेरित होकर ही जिनदीक्षा* धारण की थी।
दीक्षासे पहले आपकी शिक्षा या तो उरैयूरमें ही हुई है और या वह कांची अथवा मदुरामें हुई जान पड़ती है । ये तीनों ही स्थान उस वक्त दक्षिण भारतमें विद्याके खास केन्द्र थे और इन सबोंमें जैनियोंके अच्छे अच्छे मठ भी मौजूद थे, जो उस समय बड़े बड़े विद्यालयों तथा शिक्षालयोंका काम देते थे।
आपका दीक्षास्थान प्रायः कांची या उसके आसपासका कोई ग्राम जान पडता है और कांची ही-जिसे 'कांजीवरम्' भी कहते हैं आपके धार्मिक उद्योगोंकी केन्द्र रही मालूम होती है । आप वहीके दिगम्बर माधु थे । 'कांच्या नग्नाटकाऽहं +' आपके इस वाक्यमे भी प्राय: यही ध्वनित होता है। काँचीमें ग्राप कितनी ही बार गये है, ऐमा उल्लेख x 'गजावलीकथे में भी मिलता है।
पितृकूलकी तरह समन्तभद्रके गुरुकुलका भी प्राय: कहीं कोई म्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता और न यह मालूम होता है कि आपके दीक्षागुरुका क्या नाम था। स्वयं उनके ग्रंथोमे उनकी कोई प्रशस्तियों उपलब्ध नहीं होती और न मरे
___ * सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानपूर्वक जिनानुष्ठित सम्यक् चारित्रके ग्रहणको 'जिनदीक्षा' कहते है । समन्तभद्रने जिनेन्द्रदेवके चारित्र-गुगाको अपनी जांचद्वारा 'न्यायविहित' और 'अद्भुन उदयहित' पाया था, और इसी लिये वे मप्रसन्नचित्तमे उसे धारण करके जिनेन्द्र देवकी मच्ची मेवा और भतिम लीन हए थे। नीचेके एक पद्यमे भी उनके इसी भावकी ध्वनि निकलती है. ...
अत एव ते बुधनुगम्य चरितगुरणमद्भुतोदयम् । न्यायविहितमवधार्य जिने ! त्वयि सुप्रमन्नमनमः स्थिना वयम् ॥१३॥
----म्वयंभूस्तोत्र । ॐ द्रविड देशको राजधानी जो असेंतक पल्लवगजानोंके अधिकारमें रही है। यह मद्राससे दक्षिण-पश्चिमकी ओर ४२ मीलके फामलेपर. वेगवती नदी पर स्थित है।
+ यह पूरा पद्य प्रागे दिया जायगा । x स्टडीज़ इन साउथ इंडियन जैनिज्म, पृ० ३० ।