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________________ १५२ जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश __"इति फणिमंडलालंकारस्योरगपुराधिपसूनोः श्रीस्वामिसमन्तभद्रमुनेः कृतौ आप्तमीमांसायाम् ।" इससे मालूम होता है कि समन्तभद्र क्षत्रियवंशमें उत्पन्न हुए थे और राजपुत्र थे । अापके पिता फरिणमंडलान्तर्गत 'उरगपुर' के राजा थे. और इसलिए उरगपुरको आपकी जन्मभूमि अथवा बाल्यलीलाभूमि समझना चाहिये । 'राजावलीकथे' में आपका जन्म 'उत्कलिका' ग्राममें होना लिखा है, जो प्रायः उरगपुरके ही अन्तर्गत होगा । यह उरगपुर 'उन्यूर' का ही संस्कृत अथवा अतिमधुर नाम जान पड़ता है जो चोल राजारोंकी सबसे प्राचीन ऐतिहासिक राजधानी थी। पुरानी त्रिचिनापोली भी इमीको कहते हैं। यह नगर कावेरीके तट पर वमा हुआ था, बन्दरगाह था और किमी ममय बड़ा ही ममृद्धशाली जनपद था । समन्तभद्रका बनाया हुअा 'स्तुतिविद्या' अथवा 'जिनस्तुतिशतं' नामका एक अलंकारप्रधान ग्रंथ है, जिसे 'जिनशतक' अथवा 'जिनशतकालंकार' भी कहते है । इस ग्रंथका 'गत्वैकम्तुतमेव' नामका जो अन्तिम पद्य है वह कवि और काव्यके नामको लिये हुए एक चित्रबद्ध काव्य है । इम काव्य की छह पारे और नव वलयवाली चित्ररचनापरमे ये दो पद निकलते हैं 'शांतिवर्मकृतं.' 'जिनस्तुनिशतं'। इनसे स्पष्ट है कि यह ग्रन्थ 'शान्तिवर्मा' का बनाया हुआ और इसलिये 'शान्तिवर्मा' ममन्तभद्रका ही नामान्तर है। परन्तु यह नाम उनके मुनिजीवनका नही हो मकता; क्योंकि मुनियोंके 'वर्मान्त' नाम नहीं होते । जान पड़ता है यह * देखो जनहितैषी भाग ११, अंक ४-८, पृष्ठ ४४.० । प्रागके जैनसिद्धान्तभवनमें भी, ताड़पत्रोंपर, प्रायः ऐसे ही लेम्बवाली प्रति मौजूद है । महाकवि कालिदासने अपने 'रघुवंश' में भी 'उरगपुर' नाममे इम नगर का उल्लेख किया है। + यह नाम ग्रन्थके आदिम मंगलाचरणमें दिये हुए 'स्तुतिविद्या प्रमाधये' इस प्रतिज्ञावाक्यमे जाना जाता है। - देखो वसुनन्दिकृत 'जिनशतक-टीका' ।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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